सामाजिक बदलाव का हथियार बना बाबा कार्तिक उराँव रात्रि पाठशाला

डॉ. अरुण उराँव

शिक्षा को सामाजिक बदलाव का हथियार बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2014 में बाबा कार्तिक उराँव रात्रि पाठशाला की बुनियाद रखी गयी थी । पिछड़े ग्रामीण इलाके में गरीब बच्चों को, गांव के ही रहने वाले कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों के द्वारा, निःशुल्क पर उत्तम शिक्षा देने का प्रबंध अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के माध्यम से किया गया ।

आज, रांची, लोहरदगा एवं गुमला जिले में इस पाठशाला की संख्या बढ़कर 80 हो गयी है , जिसमे 300 शिक्षक करीब 4000 बच्चों की ज़िंदगी संवार रहे हैं । गांव के सामुदायिक भवन, धुमकुरिया या अपने आवास में ही इन बच्चों को शाम 5 से 7 बजे तक पढ़ाया जाता है । अंगेजी, विज्ञान एवं गणित विषयों पर विशेष ध्यान दिया जाता है । परिषद द्वारा हर तीन महीने पर रात्रि पाठशाला के क्रिया कलापों की समीक्षा की जाती है, जहां शिक्षको को अनुभवी एवं पारंगत प्रशिक्षकों द्वारा पठन-पाठन को आसान एवं रुचिकर बनाने के गुर सिखाए जाते हैं । चार पाठशाला को कम्युटर दिए हैं , जहां प्रोजेक्टर के माध्यम से डिजिटल क्लासेज की शुरुवात की गई है । यहां चल रहे पुस्तकालय को जरूरत की किताबों से समृद्ध किया जा रहा है ।

रात्रि पाठशाला तेजी के साथ गांव के अखरा एवं धुमकुरिया का स्थान लेता जा रहा है, जहां ग्रामीण भाई-बहनें अपने बुजुर्ग एवं बच्चों के साथ बैठकर अपने गांव एवं समाज की बेहतरी के लिए सार्थक चर्चा कर रहे हैं । हर बृहस्पतिवार को स्थानीय भाषा की क्लास के बाद अखरा में बच्चों को पारंपरिक गीत एवं नृत्य सिखाने की जिम्मेवारी गांव के बुजुर्गों की होती है ।
स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ‘योग’ एवं शारीरिक कसरत को पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है ।

रविवार या छुट्टी के दिन बच्चों को फुटबॉल सिखलाया जाता है ।

पाठशाला के बच्चों में हो रहे सुधार का आकलन समय समय पर आयोजित प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा की जाती है, जहां उनके बौद्धिक स्तर के साथ सांस्कृतिक ज्ञान को भी परख कर पुरस्कृत किया जाता है । बच्चे एवं बच्चियों के अंतर पाठशाला फुटबॉल प्रतियोगिता का आयोजन उनका एक प्रिय इवेंट होता है ।

रात्रि पाठशाला के शिक्षक अपनी पढ़ाई के साथ अपने लिए रोजगार हासिल करें इसके लिए उनकी प्रतियोगिता की तैयारी अलग से की जा रही है । युवाओं की ज्यादा रुचि फ़ौज, केंद्रीय सुरक्षा बल एवं पुलिस की भर्ती में जाने को देखते हुए गांव के ही सेवा निवृत्त फौजी एवं पुलिस अधिकारी उनकी तैयारी एवं प्रशिक्षण होने वाले शारीरिक- मानसिक परीक्षण के लिए गांव में ही कर रहे हैं ।

बीते दो वर्षों में जहाँ स्कूल और कॉलेज को कोरोना से अभिशप्त हो कर बन्द करना पड़ा वहीं हमारे रात्रि पाठशाला ने ना सिर्फ ‘on line classes’ से मरहूम गरीब ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई जारी रखी बल्कि हमारे गांव की सामूहिकता की शक्ति, समृद्ध संस्कृति एवं भाषा को ज़िंदा रखा । इस नवीन प्रयोग को सफल बनाने में महिलाएं एवं हमारे युवा साथी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं । इसीलिए अब ये एक आंदोलन का रूप ले रहा है, जब इसे एक सामाजिक बदलाव के हथियार के रूप में हर साथी ” रात्रि पाठशाला ” को अपने गांव में आरम्भ करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं ।

(लेखक: पूर्व आईपीएस और भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं)

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