प्रकृति के उपकार और भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है करमा पूजा

लातेहार: भादो मास की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली करमा पूजा इस वर्ष छह सितंबर को मनाई जाएगी। यह त्योहार भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक होने के साथ प्रकृति के प्रति मानव जगत की कृतज्ञता का भी प्रतीक है।

झारखंड राज्य के लिए यह महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों में भी बड़े पैमाने पर लोग करमा का त्योहार मनाते हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में यह त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है।

अलग-अलग ढंग से मनाते हैं त्योहार

करमा का त्योहार आदिवासी समाज के साथ-साथ सनातन धर्म के लोग भी मनाते हैं। हालांकि इनके पूजा पद्धति की विधि अलग-अलग होती है।

सनातन धर्म में करमा की पूजा मुख्य रूप से महिलाएं और युवतियां ही करती है। भादो एकादशी के दिन महिलाएं और युवतियां दिन भर निर्जला उपवास रखती हैं और करम की डाली की पूजा करती हैं।

वैदिक रीति रिवाज के साथ ब्राह्मणों के द्वारा पूजा कराई जाती है, उसके बाद महिलाओं के द्वारा मंगल गीत गाए जाते हैं।

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दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही व्रती महिलाएं और युवतियां पूजा स्थल पर पहुंचकर करम की डाली से अपने भाइयों की उन्नति और खुशहाली की आशीर्वाद मांगती है और विधि विधान के साथ किसी नदी या तालाब में करम की डाली को विसर्जित करती हैं ।

भाई की उम्र लंबी होती है

विसर्जन के बाद घर के लोग स्नान करने के पश्चात बासी चावल, दही तथा साग प्रसाद के रूप में खाते हैं। मान्यता है कि करमा की पूजा करने वाली महिलाओं और युवतियों के भाई की उम्र लंबी होती है और भाई – बहन में हमेशा स्नेह बना रहता है।

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आदिवासी समाज के लिए करमा का त्योहार सबसे बड़ा त्योहार होता है। करमा के दिन करम डाली के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के फसलों की पूजा अपने पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार की जाती है।

आदिवासी बहुल इलाकों में यह त्योहार तीन दिनों का होता है। करम त्योहार को लेकर बहन अपने मायके आती है । भाई के द्वारा अपनी बहन को नई साड़ी और कपड़े उपहार के रूप में दिए जाते हैं। भाई और बहन दोनों एक साथ मिलकर करम त्योहार को मनाते हैं।

पानी पीकर उपवास तोड़ती हैं

पहले दिन भाई-बहन करम पौधे की डाली को लाकर घर के आंगन में लगाते हैं, फिर दूसरे दिन बहनें निर्जला उपवास रखकर पूजा करती हैं और शाम को पानी पीकर उपवास तोड़ती हैं ।

फिर अगले दिन गीतों के साथ करम के पौधे को नदी या तालाब में प्रवाहित किया जाता है। कई इलाकों में तो सार्वजनिक रूप से भी इससे मनाया जाता है ।

इस दिन गांव के अखरा (पूजा स्थल) को सजाया जाता है और वहां करम की डाली स्थापित की जाती है। आदिवासी समाज की महिलाएं नई साड़ी और कपड़े पहनकर पूरे रीति रिवाज के साथ करमा की पूजा करती है।

पूजा के बाद महिला पुरुष करम डाली के चारों ओर रात भर नाचते गाते हैं। उसके बाद सुबह पूरी श्रद्धा के साथ पारंपरिक नृत्य और संगीत के बीच किसी नदी अथवा तालाब में करम डाली को विसर्जित की जाती है।

ऐसे आरंभ हुई करमा पूजा की परंपरा

करमा पूजा की शुरुआत होने की परंपरा के पीछे अलग-अलग लोगों के द्वारा अलग-अलग कारण बताए जाते हैं। लातेहार के ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह कहते हैं कि करमा पूजा को लेकर क्षेत्र में एक कहानी चर्चित है। कहानी के अनुसार करमा और धरमा नामक दो भाई थे। उनकी एक बहन भी थी। दोनों भाई काफी गरीब थे। परंतु उनकी बहन अपने भाइयों से बहुत स्नेह करती थी।

इसी बीच अचानक एक दिन बहन एक मुसीबत में फंस गई। जब भाइयों को पता चला कि उनकी बहन मुसीबत में फंसी है तो दोनों भाइयों ने अपनी जान पर खेलकर अपनी बहन को सुरक्षित बचाया।

इसके बाद बहन ने करम की डाली की पूजा की और अपने भाइयों की उन्नति और लंबी उम्र की कामना की। इसके बाद करम भगवान की कृपा से दोनों भाइयों की काफी उन्नति हुई और दोनों धनवान हो गए।

करमा और धरमा दो भाई थे

इसी मान्यता के आधार पर लोग करमा की पूजा करने लगे ,ताकि भाई बहन में अटूट स्नेह बना रहे और वे एक दूसरे को किसी मुसीबत में फंसने पर सहारा दे सके।

दूसरी मान्यता यह भी है कि करमा और धरमा दो भाई थे। करमा रोजी रोजगार की तलाश में परदेस कमाने चला गया था। जहां उसने काफी धन कमाए।

एक दिन जब हुआ धन कमा कर घर लौटा तो देखा कि उसका भाई धरमा करम डाली की पूजा कर रहा है। काफी दिनों के बाद भाई के घर आने के बाद भी धरमा भाई से मिलने के बदले पूजा में ही लीन था।

इससे नाराज होकर करमा ने अपने भाई को जमकर भला बुरा कहा और पूजा स्थल में तोड़फोड़ किया।
ऐसा करने के बाद करमा दिन प्रतिदिन गरीब और कमजोर होता चला गया।

भाई की सलाह पर करमा ने विधि विधान के साथ करम डाली

अपने भाई के बिगड़ते हालात को देखकर धरमा से रहा नहीं गया और उसने अपने भाई को बताया कि करम डाली की पूजा करो तो सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो जाएगा ।

भाई की सलाह पर करमा ने विधि विधान के साथ करम डाली की पूजा की तो फिर से करमा के जीवन में खुशहाली लौट आई।

इसके बाद दोनों भाई खुशहाली में जीवन यापन करने लगे। इसके अलावा भी कई अन्य लोकोक्तियां करम पूजा को लेकर चर्चित है।

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