संघ के शताब्दी वर्ष पर अपने संदेश में पद्मभूषण कड़िया मुंडा ने कहा कि संघ के १०० वर्ष कि यात्रा ज़ब प्रारम्भ हुई, आज मै ९१ वर्ष के उम्र, के पड़ाव पर हुँ, याने ९ वर्ष का ज़ब रहा होगा तब संघ कि स्थापना हो रही होगी, जनसंघ के साथ जुडाव युवा अवस्था मे इमरजेंसी कि जेल यात्रा मे जेल मे मेरी प्रार्थना प्रारम्भ हुई आज जो परिणाम है, वह संकल्प से सिद्धि का है, यह अपना संघ केवल एक संस्था नहीं, यह एक विचारधारा, एक चेतना और राष्ट्र के प्रति संपूर्ण समर्पण का जीवंत उदाहरण है। यह उस साधना की गाथा है, जहाँ व्यक्ति अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्र को ही अपना परिवार मान लेता है। यह उस भावना का नाम है, जो एक स्वयंसेवक के भीतर ‘राष्ट्र प्रथम’ की लौ जलाए रखती है, चाहे परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो।

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संघ का कार्यकर्ता जहाँ भी होता है, वह केवल अपना जीवन नहीं जीता—वह राष्ट्र के लिए जीता है। वह अपने परिवार की चिंता करता है, परंतु उतनी ही चिंता उसे समाज की भी होती है। वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है, लेकिन साथ ही हर उस व्यक्ति के लिए कुछ करने का भाव रखता है, जिसे समाज और राष्ट्र की आवश्यकता हो।
यह यात्रा आसान नहीं थी। प्रतिबंध लगे, आरोप लगे, षड्यंत्र रचे गए, लेकिन संघ रुका नहीं। यह उस साधक की तरह बढ़ता गया, जिसे अपने लक्ष्य पर पूर्ण विश्वास था। स्वयंसेवकों के त्याग, बलिदान और निष्ठा ने इस राष्ट्रभक्ति की धारा को कभी सूखने नहीं दिया।
संघ ने केवल स्वयंसेवकों को राष्ट्रभक्ति नहीं सिखाई, बल्कि उनके माध्यम से समाज को एक नई दिशा दी। सेवा, संगठन और संस्कार—इन्हीं तीन स्तंभों पर संघ ने राष्ट्र के उत्थान का संकल्प लिया। कहीं बाढ़ आई, कहीं भूकंप आया, कहीं सामाजिक असमानता ने समाज को तोड़ने का प्रयास किया—हर बार संघ का स्वयंसेवक सबसे पहले वहाँ खड़ा दिखाई दिया। न प्रचार, न प्रशंसा की चाहत—बस एक ही उद्देश्य: ‘राष्ट्र की सेवा’।
और आज भी, जब संघ के किसी विचारक को सुनने का सौभाग्य प्राप्त होता है, तो अपने स्वयंसेवक होने का गर्व और उन विचारों की गहराई का प्रभाव हृदय को आंदोलित कर देता है। माध्यम चाहे कोई भी हो—सीधे संवाद, कोई व्याख्यान, या किसी मंच से उनका उद्बोधन—लेकिन जब देशप्रेम उमड़ता है, तो आँखों से आंसू बनकर बहता है। यह वे आंसू होते हैं, जिनमें राष्ट्र के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण छलकता है।
संघ का यह 100 वर्षों का सफर केवल समय की माप नहीं, यह राष्ट्र पुनरुत्थान की अमरगाथा है। यह उन अनगिनत कार्यकर्ताओं की कहानी है, जिन्होंने अपने जीवन को एक बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया। यह उस दीपशिखा का प्रकाश है, जो सिर्फ स्वयंसेवकों को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज को दिशा देता है।
संघ केवल संगठन नहीं, यह जीवन का एक आदर्श है। यह वह परंपरा है, जहाँ व्यक्ति नहीं, विचार जीवित रहते हैं; जहाँ स्वार्थ नहीं, समर्पण सर्वोपरि होता है।


