धर्मपाल सिंह।
पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, परि और आवरण जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास या कह लें कि जो हमारे चारों ओर है। वहीं ‘आवरण’ का मतलब है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण जलवायु, स्वच्छता, प्रदूषण तथा वृक्ष का सभी को मिलाकर बनता है, और ये सभी चीजें यानी कि पर्यावरण हमारे दैनिक जीवन से सीधा संबंध रखता है और उसे प्रभावित करता है। यह पूरी तरह सच है कि कोरोना को बिगड़ते पर्यावरण की चेतावनी ही समझना चाहिए, क्योंकि शायद आज समय यह भी है कि हम इस बड़ी महामारी को अगर प्रकृति के साथ जोड़कर देखने की कोशिश करेंगे तो ही आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं को कुछ हद तक रोक पाएंगे, जो तमाम विषाणु आक्रामक रूप ले चुके हैं वो कहीं न कहीं प्रकृति से सीधे छेड़छाड़ और गत दशकों में वन्य जीवों व उनके आवासों पर हमले होने का परिणाम हैं। आज हमें अपनी एक सीमा अवश्य खींच लेनी चाहिए। आज समय है कि हम प्रभु-प्रकृतिप्रवृत्ति को अलग न करें। वैसे भी हमारे शास्त्रों में हवा, मिट्टी, जंगल, पानी को देवतुल्य माना गया। यह भी समझना जरूरी है कि प्रकृति हमारी प्रवृत्ति को भी तैयार करती है। आज बिगड़ते पर्यावरण से मात्र व्याधियां ही नहीं आईं, बल्कि कई कुरीतियों ने भी जन्म लिया है। उदाहरण के लिए, आज जिस तरह से दुनियाभर में फास्टफूड स्टोर्स ने जगह बना ली है, इनमें परोसा जा रहा भोजन निश्चित रूप से हमारी प्रवृत्ति पर भारी पड़ रहा है। इस तरह के फास्टफूड शरीर में तमाम व्याधियों को भी जन्म देते हैं और व्याधियों के कारण ही हमारे व्यवहार भी बदल जाते हैं। इस तरह से प्रवृत्ति पर सीधा असर पड़ता है।
मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। पर्यावरण जैसे जलवायु प्रदूषण या वृक्षों का कम होना मानव शरीर और स्वास्थय पर सीधा असर डालता है। मानव की अच्छी-बूरी आदतें जैसे वृक्षों को सहेजना, जलवायु प्रदूषण रोकना, स्वच्छता रखना भी पर्यावरण को प्रभावित करती है। मानव की बूरी आदतें जैसे पानी दूषित करना, बर्बाद करना, वृक्षों की अत्यधिक मात्रा में कटाई करना आदि पर्यावरण को बूरी तरह से प्रभावित करती है। जिसका नतीजा बाद में मानव को प्राकर्तिक आपदाओं का सामना करके भुगतना ही पड़ता है।
बढ़ती जनसंख्या, उसी अनुपात में आवश्यकताएं और त्वरित निदान के तौर पर मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का बेतरतीब दोहन ही प्रकृति के साथ ज्यादती की असल वजह है। बजाए प्राकृतिक वातावरण को सहेजने के उसे लूटने, रौंदने और बरबाद करने का काम ही आज तमाम योजनाओं के नाम पर हो रहा है! इन्हें बजाए रोकने और समझने की जगह महज बैठकों से हासिल करना
औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं है। हमें अच्छी आदतें कहीं से भी सीखने को मिलें जरूर सीखें यूरोपीय देशों में आज भी साइकिल एक प्रमुख वाहन है। यहां लोग शहर के अंदर दूरी तय करने के लिए साइकिल को तवज्जो देते हैं। मौजूदा समय में कोरोना की वजह से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। लोग शहर के अंदर सार्वजनिक वाहनों की सवारी के अलावा। साइकिल या इलेक्ट्रिक स्कूटर को चलाना ज्यादा बेहतर विकल्प समझते हैं। लंबी दूरी तय करने या फिर शहर से बाहर जाने के लिए कार व दूसरे चार पहिया वाहनों को तवज्जो दी जाती है। हमें भी अब इलेक्ट्रिक या CNG से चलने वाले वाहनों की ओर जाना चाहिए। लंबी दूरी तय करने या फिर शहर से बाहर जाने के लिए कार व दूसरे चार पहिया वाहनों को तवज्जो दी जाती है। भारतीय पर्यावरणीय स्थितियों को देखें तो पर्यावरण और प्रदूषण पर चिंता दिल्ली या राज्यों की राजधानी के बजाए हर गांव व मोहल्ले में होने चाहिए। इसके लिए सख्त कानूनों के साथ वैसी समझाइश दी जाए जो लोगों को आसानी से समझ आए। लोग जानें कि प्रकृति और हमारा संबंध पहले कैसा था और अब कैसा है। यह भले ही बहुत मामूली सी लगने वाली बात हो लेकिन कितनी महत्वपूर्ण है, समझना और समझाना होगा।
कुछ बरस पहले एक विज्ञापन रेडियो पर खूब सुनाई देता था। बूंद-बूंद से सागर भरता है। बस उसके भावार्थ को आज साकार करना होगा। आज गांवगांव में कंक्रीट के निर्माण तापमान बढ़ा रहे हैं। साल भर पानी की जरूरतों को पूरा करने वाले कुंए बारिश बीतते ही 5-6 महीनों में सूखने लग जाते हैं। तालाब, पोखरों का भी यही हाल है। पानी वापस धरती में पहुंच ही नहीं रहा है। नदियों से पानी की बारहों महीने बहने वाली अविरल धारा सूख चुकी है। उल्टा रेत के फेर में बड़ी-बड़ी नदियां तक अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं।
फ्रांस की राजधानी पेरिस में 12 दिसंबर 2015 को 196 देशों के प्रतिनिधियों ने जलवायु समझौते के मसौदे पर सहमति जताते हुए इसे अपनाया था. एक साल बाद 3 नवम्बर 2016 को अमेरिका ने राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन के दौरान पेरिस समझौते को स्वीकार किया था।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन की ओर से अगस्त 2017 में औपचारिक रूप से इस समझौते से बाहर होने की बात कही गई थी. भारत ने अप्रैल 2016 में औपचारिक रूप से पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किये थे. पेरिस
जलवायु समझौते के तहत भारत ने वादा किया था कि वह साल 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 33 से 35 फीसदी की कमी लाएगा. जिसके लिए भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कटिबद्ध है। इसलिए उन्होंने भारत में ऊर्जा के अन्य क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया है जिसमें सौर ऊर्जा प्रमुख है और इसको लेकर उठाये गए कदमों ने दुनिया को चौंका दिया है और दूसरे शब्दों में कहें तो भारत की तो संस्कृति है ऐतरेयोपनिषत् के अनुसार ब्रह्मांड का निर्माण पाँच तत्वों पृथ्वी, वायु, आकाश, जल एवं अग्नि को मिलाकर हुआ है – इमानि पंचमहाभूतानि पृथिवीं, वायुः, आकाशः, आपज्योतिषि। इन्हीं पाँच तत्वों के संतुलन का ध्यान वेदों मै रखा गया है। इन तत्वों में किसी भी प्रकार के असंतुलन का परिणाम ही सूनामी, ग्लोबल वार्मिंग, भूस्खल, भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदायें हैं वेदों में प्राकृति के प्रत्येक घटक को दिव्य स्वरूप प्रदान किया गया है। प्रथम वेद ऋग्वेद का प्रथम मन्त्र ही अग्नि को समर्पित है।
5 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने जिस मंत्र का जिक्र किया वह दर्शाता है सरकार पर्यावरण को लेकर बेहद सतर्क और निरंतर पर्यावरण सुधार में कार्यरत है।
माता भूमि: पुत्रोहं पृथिव्याः।
नमो माता पृथिव्यै नमो माता पृथिव्यै।।
अर्थात अर्थात भूमि (मेरा देश) मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ। माता पृथ्वी (मातृभूमि) को नमस्कार है।
पृथ्वी पर विराजमान जीव एवं वनस्पति के महत्व को वेदों द्वारा स्वीकार कर उनके संरक्षण की आवश्यकता विभिन्न मन्त्रों के द्वारा की गई है। ऋग्वेद में वनस्पतियों से पूर्ण वनदेवी की पूजा की गई है। आदि काल से ही पृथ्वी को मातृभूमि की संज्ञा दी गई है… भारतीय अनुभूति में पृथ्वी आदरणीय बताई गई है… इसीलिए पृथ्वी को माता कहा गया…
महाभारत के यक्ष प्रश्नों में इस अनुभूति का खुलासा होता है… यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था कि आकाश से भी ऊंचा क्या है और पृथ्वी से भी भारी क्या है? युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया कि पिता आकाश से ऊंचा है और माता पृथ्वी से भी भारी है… हम उनके अंश हैं… यही नहीं इसका साक्ष्य वेदों
(अथर्ववेद और यजुर्वेद) में भी मिलता हैं… यही नहीं सिंधु घाटी सभ्यता जो 3300-1700 ई.पू. की मानी जाती है… विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी… सिंधु सभ्यता के लोग भी धरती को उर्वरता कीदेवी मानते थे और पूजा करते थे।
वृक्ष हमारे मित्र हैं ,वृक्ष हमारी जान।
वृक्षों की रक्षा बने ,पर्यावरणी शान।
वृक्षारोपण कर करें ,उत्सव की शुरुआत।
पर्यावरण की सुरक्षा ,सबसे पहली बात।
(लेखक: झारखंड भाजपा के संगठन महामंत्री हैं।)