कटिहार। मूंग प्रोटीन, विटामिन ए, विटामिन सी, फोलिक एसिड, थायमिन और रिबोफ्लेविन जैसे पोषक तत्व का अच्छा स्रोत है और मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ-साथ मृदा (मिट्टी) को भी उपजाऊ बनाती है।
मूंग को खरीफ, रबी और जायद में दलहन फसलों के रूप में उगाया जाता है। किसानों के लिए मूंग की खेती कितनी फायदेमंद है इसको लेकर बुधवार को हिन्दुस्थान समाचार से खास बातचीत में दूरभाष पर कृषि विज्ञान केंद्र, रोहतास के मृदा वैज्ञानिक डॉ रमाकान्त सिंह ने बताया कि मूंग फसल की बुवाई खरीफ और जायद दोनों फसलों में अलग अलग समय पर की जाती है। खरीफ में जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बुवाई करनी चाहिए। जायद में मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक बुवाई करनी चाहिए।
मूंग की खेत में खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग को लेकर रमाकांत सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि खेती से पहले मिटटी की जांच कर लेनी चहिये। मूंग के लिए 20 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 40 किलो ग्राम फास्फोरस, 20 किलो ग्राम पोटाश, 25 किलो ग्राम गंधक एवं 05 किलो ग्राम जिंक प्रति हैक्टेयर की अवश्यकता होती है।
रमाकांत सिंह ने बताया कि वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर मूंग की सात-आठ क्विंटल प्रति हेक्टयर फसल उपज हो जाती है। उन्होंने बताया कि खेत में मूंग की फसल तैयार हो जाने के बाद फलियां तोड़कर फसल के शेष भाग की खेत में जुताई करके मिला देने से मृदा की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती हैं।
रमाकांत सिंह ने कहा कि मूंग फसल की जड़ों मेंग्रंथियां पाई जाती है जिनमें राइजोबियम नामक जीवाणु वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके इसे पौधों को उपलब्ध कराते हैं जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।
कटिहार, 24 मई (हि.स.)। मूंग प्रोटीन, विटामिन ए, विटामिन सी, फोलिक एसिड, थायमिन और रिबोफ्लेविन जैसे पोषक तत्व का अच्छा स्रोत है और मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ-साथ मृदा (मिट्टी) को भी उपजाऊ बनाती है।
मूंग को खरीफ, रबी और जायद में दलहन फसलों के रूप में उगाया जाता है। किसानों के लिए मूंग की खेती कितनी फायदेमंद है इसको लेकर बुधवार को हिन्दुस्थान समाचार से खास बातचीत में दूरभाष पर कृषि विज्ञान केंद्र, रोहतास के मृदा वैज्ञानिक डॉ रमाकान्त सिंह ने बताया कि मूंग फसल की बुवाई खरीफ और जायद दोनों फसलों में अलग अलग समय पर की जाती है। खरीफ में जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बुवाई करनी चाहिए। जायद में मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक बुवाई करनी चाहिए।
मूंग की खेत में खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग को लेकर रमाकांत सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि खेती से पहले मिटटी की जांच कर लेनी चहिये। मूंग के लिए 20 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 40 किलो ग्राम फास्फोरस, 20 किलो ग्राम पोटाश, 25 किलो ग्राम गंधक एवं 05 किलो ग्राम जिंक प्रति हैक्टेयर की अवश्यकता होती है।
रमाकांत सिंह ने बताया कि वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर मूंग की सात-आठ क्विंटल प्रति हेक्टयर फसल उपज हो जाती है। उन्होंने बताया कि खेत में मूंग की फसल तैयार हो जाने के बाद फलियां तोड़कर फसल के शेष भाग की खेत में जुताई करके मिला देने से मृदा की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती हैं।
रमाकांत सिंह ने कहा कि मूंग फसल की जड़ों मेंग्रंथियां पाई जाती है जिनमें राइजोबियम नामक जीवाणु वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके इसे पौधों को उपलब्ध कराते हैं जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।