NEW DELHI: केंद्रीय जनजातीय कार्य और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) ने गुरुवार को नई दिल्ली में दो दिवसीय जनजातीय अभिविन्यास कार्यक्रम आदि व्याख्यान का उद्घाटन किया। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान (एनटीआरआई) ने किया, जिसका उद्देश्य जनजातीय परम्पराओं और संस्कृति की जटिलताओं की गहरी समझ और उनके अस्तित्व की चुनौतियों का पता लगाना है। यह आदिवासी पहचान और देश की सांस्कृतिक विविधता में आदिवासी योगदान का पता लगाने की एक पहल है।
आदि व्याख्यान आदिवासी समुदायों को भारत की सांख्यिकीय जानकारी और संवैधानिक सुरक्षा उपायों से परिचित करायेगा ताकि पंचायतों (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) (पीईएसए) कानून, 1996, वन अधिकार कानून (एफआरए), 2006, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून, 1989 की बारीकियों को उजागर किया जा सके। इसके जनजातीय शासन और भूमि अधिकारों को आकार देनेवाले कानूनी ढांचे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करने की उम्मीद है और यह जनजातीय लोगों की गहरी समझ के लिए मंच तैयार करेगा। उद्घाटन कार्यक्रम में पांच राज्यों (छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम) के मुंडा समुदायों के प्रतिनिधियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
उद्घाटन भाषण देते हुए अर्जुन मुंडा ने आदिवासी पहचान, उन्हें मान्यता देने और संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासी पहचान को संरक्षित करने के लिए आदिवासी भाषा और साहित्य महत्वपूर्ण हैं। मंत्री ने जनजातीय लोगों के उत्थान के लिए प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम-जनमन) पहल सहित विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) के लिए सरकार द्वारा किये गये प्रयासों पर प्रकाश डाला। श्री मुंडा ने एफआरए, 2006; पेसा, 1996; अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून, 1989 पर चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए आदि मंथन की भी सराहना की और आदिवासी समुदाय के बीच जागरूकता फैलाने के लिए एनटीआरआई जैसे अनुसंधान संस्थानों की आवश्यकता बतायी। मंत्री ने जनजातीय लोगों को उनसे संबंधित भारत के संविधान के प्रावधानों के बारे में अवगत कराने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने आदिवासी समुदायों के कल्याण के लिए अतीत, वर्तमान और भविष्य पर नया नजरिया अपनाने और उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता को स्वीकार किया।