East Champaran: बिहार के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर (Governor Rajendra Vishwanath Arlekar) ने कहा कि पारंपरिक प्रकृति खेती हमारी मूल है।
इससे न केवल खेती में लागत कम होगी,बल्कि उत्पादन में भी वृद्धि होगी,साथ ही रसायनिक खाद के प्रयोग से बीमार हो रही मिट्टी भी स्वस्थ बनेगी।ऐसे में किसान स्वयं आगे बढकर प्राकृतिक खेती को अपनाकर अपनी आमदनी दुगुनी करने के लिए काम करे।देश के कृषि वैज्ञानिक भी लगातार प्रकृति खेती के लिए किसानो को प्रेरित कर रहे है।उक्त बाते रविवार को महामहिम श्री आर्लेकर ने मोतिहारी राजाबाजार स्थित प्रेक्षा गृह में कृषि प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (अटारी) एवं पिपराकोठी कृषि विज्ञान केन्द्र के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय राज्यस्तरीय प्रकृति सम्मेलन के उद्धाटन के बाद किसानो को संबोधित करते हुए कही।
उन्होने कहा कि आज का दिन विशेष है। इसलिए कार्यक्रम में आये लोग जिस कल्पना के साथ आये है, वे यहां से जाते हुए प्रकृति खेती की संकल्पना लेकर ही जायें। कहा कि आज हम बिहार की जनता की ओर से देश के प्रधानमंत्री के जन्मदिवस पर उन्हे शुभकामनाएं दे रहा है। उन्होने पूरे विश्व में देश का नाम उजागर किया है। विश्वभर में भारत की ही चर्चाएं हो रही है। कहा कि देश के प्रधानमंत्री का कहना है कि जब किसान संतुष्ट होगा तब ही देश संतुष्ट होगा। इस सम्मेलन के माध्यम से हम सभी प्राकृतिक खेती के संदर्भ में चिंतन के लिए आये है।
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किसान प्रकृति खेती के माध्यम से कम लागत में अधिक उत्पादन कर सकेंगे।उन्होने कहा प्राकृतिक खेती के लिए एक देशी गाय की जरूरत है।जिसके गोबर,गोमूत्र और कुछ प्रकृति अवयव को मिलाकर जीवामृत घनामृत जैसे कीटनाशक से लेकर कई उच्च स्तर का खाद तैयार कर सकते है,जो रसायनिक खाद का बेहतर विकल्प है।उन्होने कहा कि गारंटी वाले मानसिकता को छोड़ रिस्क वाले मानसिकता को अपनाये इसके दूरगामी परिणाम मिलेगे।उन्होने कहा कि आधुनिक खेती के नाम पर हम रसायनिक खाद का उपयोग कर कुछ वर्षो तक लाभ तो उठा लिए। लेकिन परिणाम क्या हुआ लगातार भूमि उर्वरकता धट रही है।पश्चिमी देश के सुझाव पर रासायनिक खेती करके मिट्टी और भोजन को प्रदूषित कब तक करेगे।उन्होने मिट्टी,पानी,हवा प्रकृति की देन है।उन्होने कहा कि जंगलो में बड़े-बड़े पेंड़ो के लिए किसी भी तरह के रासायनिक खाद नहीं दिए जाते।उन्होने कहा कि हिमाचल प्रदेश के किसानो ने समय और परिस्थिति को पहचान करते हुए वहां के दो लाख से ज्यादा किसान प्रकृति खेती कर अच्छा उत्पादन कर रहे है। यहां मंडी में सेव एवं टमाटर की खेती होती है। जहां एक-एक सेव 8 सौ ग्राम तक के होते है।बिहार खेती प्रधान राज्य है,जहां तीन करोड किसान है।अगर सब मिलकर प्रकृति खेती को अपनाये तो समाज के साथ देश का कायाकल्प हो जायेगा।