चुनाव
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मै आँसू की एक बूँद हूँ..
मुझे भेजा गया है धरती पर किसी के आँखो से बरसने के लिए । मेरी नियति है किसी के दुख केआँसू बनना..
मगर नियति ने मुझे किस व्यक्ति के आँखो से गिरूँ अपने निमित्त के चुनाव करने की स्वतंत्रता दे रखी है । मै सोच रही हूँ किसके अश्रुधार की बूँद बनूँ ।
मेरे सामने कर्ज मे डुबा रमुआ किसान का परिवार हैं। मै सोचने लगी इस परिवार मे किसके नयन से मोती बन टपक पडूँ ।
एक वृद्ध चारपाई पर लेटा खाँस रहा है । लगता है वो रमुआ का बाप है ..दमा से साँस लेने मे तकलीफ हो रही है। अनेक व्याधियों से ग्रसित उसका शरीर जर्जर हो चुका है मगर उसके मन मे विभिन्न व्यंजन को खाने की इच्छा है । आलू मटर की सब्जी ,पूरी, खीर ,मिठाई और न जाने क्या क्या …मगर न स्वास्थ साथ दे रहा है न घर वाले ही ये भोजन दे रहे हैं । क्या मै उसके नयन कोर से गिरूँ?
पास मे रमुआ सिर पर हाथ धरे बेहद रूआँसा चितिंत अवस्था मे जमीन पर बैठा बेटा से कह रहा है इस बार फसल बरबाद हो चुकी है.. खाने के लाले पडने वाले है जो साहूकार से कर्ज लिया था उसे कैसे भरे …फिर लाडो का ब्याह भी तो सामने है। वेदना से उसका गला भरा जा रहा है । क्या मै उसकी अश्रूबूँद बन छलकूँ ?
रमुआ की पत्नी पति के लिए चाय बनाने रसोई मे है । चायपत्ती की लास्ट खेप उबलते पानी मे डाल सोच रही है कल क्या होगा ? बेटा, बेटी ,ससुरजी को कल क्या भोजन देगी । खाली डिब्बे उसकी नजर के सामने है । उसका दुखी मन विकल है। क्या उसके गालो पर चमकूँ?
कमरे मे एक किशोरी रमुआ की बात सुन दुखी बैठी है । वह यह सोच कर मन को म्लान किये जा रही है कि पिता पहले ही चिंतिंत है ऐसे मे उसका ब्याह के लिए जो दहेज देने का पिता जो वादा कर आये हैं उसका क्या होगा । वो अपने पिता के दुख को और बढ़ा रही है . वही उनके दुख सबसे बड़ा कारण है क्या मै उसके भीगे मन को छोड़ आँखों से निकलूँ?
रमुआ के पास बैठा किसान का बेटा बैठा नजर आया । जोश हौसला से भरा हुआ।पिता की बातें सुनकर भावुक हो उठा । पिता के काँधें पर हाथ रख कर कह रहा है हर समस्या का हल होता है मिलकर कोई उपाय सोच लेगे । मै उसकी आँखो मे चमके विश्वास व आशा की भाव आवेग की बूँद बन छलक पड़ी।
-कंचन अपराजिता
(मौलिक व स्वरचित)