भारतीय ज्ञान प्रणाली विश्व में सर्वोत्तम : राज्यपाल

रांची। झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन् ने शनिवार को कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली विश्व में सर्वोत्तम है। इसके लिए हमलोगों में गौरव का भाव होना चाहिए। भारतीय ज्ञान परंपरा में जीवन जीने के तरीकों के साथ मानव मूल्य भी स्थापित थे। हम अपनी माँ के पास अभी भी बिना समय लिए हुये जाते हैं, लेकिन आज देखा जा रहा है की बुजुर्गों को बात करने के लिए बच्चों से समय लेना पड़ता है। शिक्षा का अर्थ सिर्फ डिग्री ही नहीं बल्कि ज्ञान अर्जित करना भी है। ऐसा ज्ञान जिसमें बुजुर्गों के प्रति सम्मान हो, समाज के प्रति लगाव हो और विश्व बंधुत्व की भावना हो।

राज्यपाल शनिवार को संस्कृत विभाग, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय तथा संस्कृत भारती के संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उद्धाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि हमें भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रयास करना चाहिए। योग और आयुर्वेद की भारतीय पद्धति विश्व के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि हमें जीवन मूल्यों के प्रति सचेष्ट होना चाहिए।

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चन्द्रयान की सफलता पर वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए सीपी राधाकृष्णन् ने कहा कि उसके टीम लीडर एस. सोमनाथ का मानना है कि संस्कृत के शास्त्रों में विज्ञान के बीज बिखरे पड़े हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत के शास्त्रों में वर्णित ज्ञान अतुलनीय है। उन्होंने आगे कहा कि हमें मैकाले की शिक्षा प्रणाली को बदलना होगा और इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में अनेक प्रावधान किये गये हैं। भारतीय ज्ञान प्रणाली को प्रोत्साहन देना इस शिक्षा नीति के प्रधान उद्देश्यों में एक है। उन्होंने आगे कहा कि इस शिक्षा नीति के फलस्वरूप भारत निकट भविष्य में नवाचारों का केन्द्र बनेगा।

उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संघटन मंत्री दिनेश कामत ने कहा कि संस्कृत शिक्षा हमारी संस्कृति की संरक्षिका है,जिसमें सुदृढ़ सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था के आधारभूत तत्त्व सन्निहित हैं। संस्कृत शास्त्रों की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान की कोई भी शाखा संस्कृत से अछूती नहीं है। इसीलिए संस्कृत का अध्ययन सभी लोगों को करना चाहिए।

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आयुर्वेद, योग, संगीतशास्त्र आदि विभिन्न विद्याएं संस्कृत से ही विकसित हुई हैं। उन्होंने इस अवसर पर आयुर्वेद के ग्रन्थों में प्रतिपादित दिनचर्या, ऋतुचर्या पर प्रकाश डाला। इनमें स्वस्थ जीवन के सूत्र सन्निहित है। लिपि की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने महाभारत का सन्दर्भ उधृत किया। संस्कृत की भाषाई वैज्ञानिकता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत के उच्चारण तथा उसके लेखन से हमारा तन्त्रिका तन्त्र सुदृढ़ होता है। उन्होंने कहा कि समस्त भारतीय भाषाएं किसी न किसी रूप में संस्कृत से प्रभावित हैं। गुरुकुल पद्धति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हुए उन्होंने कहा कि इससे गुरु-शिष्य का सम्बन्ध सुदृढ़ होता है तथा इससे ज्ञान अगली पीढ़ी को सहजता से प्रवाहित होता है।

मौके पर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डा.) तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि भारतीय संस्कृति और दर्शन का वैश्विक प्रभाव निर्विवाद रूप से दृष्टिगोचर होता है। संस्कृत के शास्त्रों की धरोहरों को भावी पीढ़ी के लिए न केवल संरक्षित किया जाना चाहिए बल्कि उसके अनुसन्धान की भी आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से संस्कृत में संरक्षित ज्ञान से नवाचारों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऋतुपरिवर्तन, आतंकवाद, मानसिक तनाव जिससे मानव जाति जूझ रही है, इन सबके निदान में भारतीय ज्ञानपरम्परा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान समय में इस बात की आवश्यकता है हम भारतीय ज्ञान परम्परा में संरक्षित ज्ञान को आत्मसात् करें।

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संस्कृत विभाग, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डा. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने कहा कि संस्कृत वाङ्मय में भारतीय ज्ञान परम्परा न केवल श्रुति परम्परा से संरक्षित है बल्कि संस्कृत की विशाल ज्ञान राशि हमारे महर्षियों के द्वारा लिपिबद्ध भी की गई है।
इस अवसर पर दो पुस्तकों का विमोचन किया गया जिनमें ‘शाश्वती’ तथा ‘Science, Innovation and Ecology for Sustainable Development Goals’ सम्मिलित हैं।
वहीं संस्कृत में विज्ञान एवं वस्तु प्रदर्शिनी का आयोजन किया गया, जिसका अवलोकन अन्य लोगों के साथ राज्यपाल ने किया।

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