नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि भारत को स्वदेशी को प्राथमिकता देते हुए आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम बढ़ाने होंगे। सरसंघचालक ने इस बात जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार आपसी इच्छा से होना चाहिए, दबाव में नहीं। डॉ. भागवत विज्ञान भवन में चल रहे तीन दिवसीय व्याख्यान शृंखला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज’ के दूसरे दिन संबोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम संघ की शताब्दी वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया गया है। डॉ. भागवत ने कहा कि आत्मनिर्भरता ही सब समस्याओं का समाधान है और इसी में स्वदेशी की सार्थकता निहित है। आत्मनिर्भर होने का मतलब आयात बंद करना नहीं है। दुनिया चलती है क्योंकि यह एक-दूसरे पर निर्भर है। इसलिए आयात-निर्यात जारी रहेगा।
हालांकि, इसमें कोई दबाव नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, “अपना देश आत्मनिर्भर होना चाहिए। इसके लिए स्वदेशी के उपयोग को प्राथमिकता दें। देश की नीति में स्वेच्छा से अंतरराष्ट्रीय व्यवहार होना चाहिए, दबाव में नहीं। यही स्वदेशी है।” उन्होंने कहा कि केवल आवश्यक वस्तुओं का ही आयात किया जाना चाहिए बाकी सभी वस्तुओं का उत्पादन देश में ही होना चाहिए। सरसंघचालक ने बताया कि संघ स्वयंसेवक भविष्य में ‘पंच परिवर्तन’ यानी समाज परिवर्तन के पांच कार्यों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। इनमें संस्कारात्मक अनुभव शामिल है, जिसके अंतर्गत बच्चों को वास्तविक जीवन से परिचित कराने की बात कही गई।
उन्होंने कहा, “बच्चों को पेरिस ले जाने के बजाय कारगिल, झुग्गी-बस्तियों और ग्रामीण जीवन दिखाना चाहिए ताकि वे समाज की सच्चाई समझ सकें।” उन्होंने इसके तहत ‘कुटुंब प्रबोधन’ की अवधारणा रखते हुए कहा कि प्रत्येक परिवार को बैठकर सोचना चाहिए कि वे भारत के लिए क्या कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “पौधा लगाने से लेकर वंचित वर्ग के बच्चों को पढ़ाने तक कोई भी छोटा कार्य देश और समाज से जुड़ने का भाव पैदा करता है।” पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि केवल चर्चा करने से बदलाव संभव नहीं है। डॉ. भागवत ने कहा, “छोटे-छोटे प्रयास करना जरूरी है, जैसे पौधा लगाना, जल संरक्षण करना और प्लास्टिक का कम उपयोग करना।इसी से वास्तविक परिवर्तन आएगा।”