नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि तकनीकी और आधुनिकता का शिक्षा से कोई विरोध नहीं है। शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि व्यक्ति को संस्कारित कर संपूर्ण मनुष्य बनाना है।
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डॉ. भागवत विज्ञान भवन में गुरुवार को तीन दिवसीय व्याख्यान शृंखला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज’ के तीसरे दिन जिज्ञासा समाधान सत्र में प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे। तकनीक और आधुनिकीकरण के युग में संस्कार और परंपराओं के संरक्षण से जुड़े सवाल पर सरसंघचालक ने कहा कि तकनीक मनुष्य की भलाई के लिए आती है, उसका उपयोग करना और उसके दुष्परिणामों से बचना मनुष्य का काम है। उन्होंने स्पष्ट किया कि तकनीक का मालिक मनुष्य ही रहना चाहिए, तकनीक मनुष्य पर हावी न हो।
उन्होंने कहा, “शिक्षा का अर्थ केवल लिटरेसी या जानकारी नहीं, बल्कि ऐसा संस्कार है जो व्यक्ति को विवेकशील बनाता है। वही शिक्षा है जो विष का भी उपयोग औषधि में करने की बुद्धि दे।” भागवत ने कहा कि विदेशी आक्रांताओं ने भारत की परंपरागत शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर दिया और देश पर शासन करने के उद्देश्य से ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू की जो गुलामी की मानसिकता को पोषित करती रही। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत में शिक्षा व्यवस्था का उद्देश्य केवल शासन चलाना नहीं, बल्कि समाज का पालन-पोषण करना और भावी पीढ़ी में आत्मगौरव का निर्माण करना भी है। उन्होंने कहा, “नई शिक्षा नीति-2020 इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पंचकोशीय शिक्षा का प्रावधान है और यह बच्चों को उनके गौरवशाली अतीत से जोड़ने का प्रयास करती है।”
संस्कृत भाषा से जुड़े प्रश्न के उत्तर में सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि भारत को सही अर्थों में समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन आवश्यक है। इसे अनिवार्य बनाने की जरूरत नहीं है, लेकिन इसके प्रति आग्रह और रुचि पैदा करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम है, लेकिन शिक्षा का मूल उद्देश्य भारतीय संस्कृति और परंपरा से जुड़े सार्वभौमिक मूल्यों का प्रसार करना होना चाहिए।
डॉ. भागवत ने जोर देकर कहा कि शिक्षा धार्मिक शिक्षा नहीं है, बल्कि वह सार्वभौमिक मूल्य प्रदान करती है जो समाज को जोड़ती है और व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाती है। उन्होंने कहा, “बड़ों का आदर करना, अहंकार से दूर रहना और अच्छे संस्कार अपनाना— ये ऐसे मूल्य हैं जो हर समाज में समान रूप से लागू होते हैं। इन्हीं मूल्यों से शिक्षा की वास्तविक दिशा तय होती है।”