भोपाल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों से ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम में बातचीत की। दो घंटे चले इस कार्यक्रम में उन्होंने परीक्षा और जीवन में तनाव पर बच्चों के सवालों के जबाव दिए। कार्यक्रम में भोपाल के दीपेश और रितिका गोड़के को भी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री से सवाल पूछने का मौका मिला।
कक्षा 10वीं के छात्र दीपेश का सवाल था कि हम इंस्ट्राग्राम और अन्य इंटरनेट मीडिया की इस दुनिया में अपना ध्यान भटकाए बिना अपनी पढ़ाई पर ध्यान कैसे केंद्रित करें। प्रधानमंत्री ने जवाब दिया कि निर्णय हमें करना है कि आप स्मार्ट हैं या गैजेट्स स्मार्ट हैं। कभी-कभी लगता है कि आप अपने से ज्यादा गैजेट्स को स्मार्ट मान लेते हैं। गलती वहीं से शुरू हो जाती है। आप इस बात पर विश्वास करें कि परमात्मा ने आपको बहुत शक्ति दी है और आपसे स्मार्ट गैजेट्स नहीं हो सकता। आप जितने स्मार्ट होंगे गैजेट्स का उतने प्रभावी तरीके से उपयोग कर सकेंगे। देश के लिए यह चिंता का विषय है। मुझे पता चला है कि भारत में औसत 6 घंटे लोग स्क्रीन पर गुजारते हैं। हमें गैजेट्स गुलाम बना रहा है। हम इसके गुलाम न बनें और अपनी आवश्यकता के अनुसार इसका उपयोग करें।
शासकीय सुभाष माध्यमिक विद्यालय स्कूल ऑफ एक्सीलेंस भोपाल की रितिका गोड़के 12वीं की छात्रा हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा कि हम अधिक से अधिक भाषाएं कैसे सीख सकत हैं? प्रधानमंत्री ने उनके सवाल का जवाब देते हुए कहा कि हमारा देश विविधता वाला देश है। इस पर हमें गर्व होना चाहिए। यहां संचार के अनेक साधन हैं। हमें कोशिश करनी चाहिए कि अन्य राज्यों की भाषाएं सीखें। इसके जरिए हमें अनुभवों का निचोड़ भी मिलता है। हम भाषा के जरिए विविधताओं से परिचित होते हैं। बिना बोझ बनाए हमें भाषा सीखनी चाहिये। दुनिया की सबसे पुरातन भाषा जिस देश के पास हो उसे गर्व होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए। हमारी तमिल भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि मातृभाषा के अलावा दूसरे राज्य की भाषा का भी हमें ज्ञान हो। आप देखिएगा आपको आनंद आएगा, जब दूसरे राज्य के व्यक्ति से मिलोगे और दो वाक्य भी उसकी भाषा में बोलेगे, तो उसे अपनापन महसूस होगा।
रितिका के सवाल पर प्रधानमंत्री ने अपने पुराने दिनों का एक किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा कि बहुत साल पहले की बात है। जब मैं सामाजिक काम में लगा था। अहमदाबाद में एक मजदूर परिवार था। मैं कभी उनके यहां भोजन के लिए जाता था। वहां एक बच्ची कई भाषाएं बोलती थी। क्योंकि, वो मजदूरों की कॉलोनी थी। उसकी मां केरल, पिता बंगाल से थे। कोस्मोपॉलिटन होने की वजह से वहां हिंदी चलती थी। बगल का एक परिवार मराठी था। स्कूल गुजराती होती थी। मैं हैरान था वो 7-8 साल की बच्ची बंगाली, मराठी, मलयालम, हिंदी फर्राटेदार बोलती थी। घर में अगर पांच लोग बैठे हैं, इससे बात करनी है तो मलयालम में करेगी, इससे बात करने है तो हिंदी में करेगी, इससे बात करनी है तो बंगाली में करेगी…। उसकी प्रतिभा खिल रही थी। इसीलिए, मेरा आपसे आग्रह है कि हमें अपनी विरासत पर गर्व होना चाहिए। हर भाषा पर गर्व होना चाहिए।