Jodhpur: राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक रोजगार पाने के लिए महिला का विवाहित होना जरूरी की शर्त को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित कर दिया और कहा कि अविवाहित होने के आधार पर सरकारी रोजगार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और महिला की गरिमा का भी हनन है।
महिला एवं बाल विकास विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के नियुक्ति के लिए जारी विस्तृत नियमों में विवाहित होना आवश्यक शर्त को अविवाहित उम्मीदवारों के लिए हाइकोर्ट ने अतार्किक, भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन माना है।
न्यायालय ने निर्णय में व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि इस न्यायालय को यह गौर करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है कि भेदभाव करने का एक नया मोर्चा, जिसकी कल्पना या विचार तक संविधान निर्माताओं ने भी नहीं की थी, अब राज्य सरकार द्वारा परिपत्र में विवादास्पद शर्त (महिला का विवाहित होना जरूरी) डालकर खोल दिया है। जि़ला बालोतरा, राजस्थान निवासी मधु चारण की ओर से अधिवक्ता यशपाल खि़लेरी ने पैरवी की। राजस्थान हाइकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश दिनेश मेहता ने रिपोर्टेबल निर्णय दिया।
वर्तमान में अब नव सर्जित जि़ला बालोतरा के गांव गुगड़ी, ग्राम पंचायत आकड़ली बकसिराम निवासी मधु चारण की ओर से अधिवक्ता यशपाल खि़लेरी ने रिट याचिका दायर कर बताया कि महिला एवं बाल विकास विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के नियुक्ति के लिए जारी विस्तृत गाइडलाइन नियमों में महिला का विवाहित होना आवश्यक की शर्त सम्मलित कर रखी है, जिस कारण सम्पूर्ण राजस्थान के सभी संबंधित राजस्व ग्राम में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों पर अविवाहित लडक़ी/महिला आवेदन ही नहीं कर सकती है।
याची की ओर से बताया गया कि बाल विकास परियोजना अधिकारी बालोतरा द्वारा विज्ञप्ति दिनांक 28 जून .2019 जारी कर तहसील के विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्रों पर रिक्त आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के पदों के लिए आवेदन पत्र मांगे गये। याची के राजस्व गांव गुगड़ी में पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पद पर याची की माता नियुक्त थी लेकिन उनके आसामयिक निधन होने से पद रिक्त हो गया। याची के पिता के केवल दो ही पुत्रियां है इस कारण माता के देहांत पश्चात दोनों पिता के पास ही रह रही हैं।
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याची ने नियुक्ति के लिए आवेदन पत्र पेश कर दिया लेकिन सम्बंधित अधिकारी ने नियमों में विवाहित होना आवश्यक की शर्त होने के कारण उसे मौखिक रूप से अपात्र बता दिया था। जिस पर याची ने स्पीड पोस्ट से आवेदन भी भेज दिया और उक्त नियम विवाहित होना आवश्यक को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की।
याचिका की प्रथम सुनवाई पर ही न्यायालय ने अंतरिम आदेश से याची की अभ्यर्थिता प्रोविजनल कंसीडर करने के आदेश दे दिए थे लेकिन नियुक्ति आज दिन तक किसी को भी नही दी।
याचिका की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता यशपाल खि़लेरी ने बताया कि भारत के संविधान में नागरिकों में भेदभाव करने पर स्पष्ट मनाही है और विधि के समक्ष समानता का मौलिक अधिकार प्रदत्त है। बावजूद इसके, राज्य सरकार द्वारा विवाहित महिला और अविवाहित महिला में भेदभाव किया जाकर एक नया मोर्चा खोल दिया गया है, जिसकी कल्पना या विचार तक भारत के संविधान के निर्माताओं ने भी नहीं किया था, जो अब राज्य सरकार द्वारा परिपत्र में विवादास्पद शर्त (महिला का विवाहित होना जरूरी) डालकर खोल दिया है। जिसे निरस्त करने की प्रार्थना की गई।
याची की ओर से ये भी बताया गया कि किसी भी नागरिक को उसके वैवाहिक स्थिति को आधार मानकर उसे सार्वजनिक रोजगार देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, और अगर ऐसी शर्त अधिरोपित की जाती है तो वह प्रथमदृष्टया ही अवैध, मनमानी और असंवैधानिक हैं। याची के अधिवक्ता खि़लेरी ने न्यायालय का ध्यान सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक निर्णय मधु किशकर बनाम बिहार राज्य की ओर भी दिलाया और बताया कि पूर्व में महिला बनाम पुरुष के मध्य भेदभाव होने को चुनौती दी जाती रही है, लेकिन अब तो राजस्थान सरकार के कृत्य से अविवाहित महिला बनाम विवाहित महिला के मध्य भेदभाव करने का नया अध्याय शुरू किया गया है जो मनमाना अवैध और गैरवाजि़ब है।
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा बताया गया कि याची द्वारा आवेदन पत्र अंतिम तिथि के पश्चात पेश किया है, इसलिए नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है। साथ ही बताया गया कि महिला के विवाहित होना जरूरी के नियम बाबत राज्य सरकार की मंशा यह है कि अविवाहित लडक़ी के नियुक्त कर देने के बाद उसकी शादी हो जाने पर वह अन्यत्र चली जाने से आंगनबाड़ी केंद्र का काम बाधित हो जायेगा।
राज्य सरकार और याची को सुनने के बाद रिकॉर्ड का परिशीलन कर वरिष्ठ न्यायाधीश दिनेश मेहता ने राज्य सरकार के तर्कों से असहमत होते हुए रिपोर्टेबल निर्णय देते हुए आदेशित किया कि सार्वजनिक रोजगार के लिए अविवाहित उम्मीदवार होने मात्र से उसे अपात्र मानना अतार्किक, भेदभावपूर्ण और संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का स्पष्ठ उल्लंघन की श्रेणी में आता है। साथ ही उच्च न्यायालय के एकलपीठ न्यायाधीश ने अपने निर्णय में व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि इस न्यायालय को यह गौर करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है कि भेदभाव करने का एक नया मोर्चा, जिसकी कल्पना या विचार तक संविधान निर्माताओं ने भी नहीं की थीं, अब राज्य सरकार द्वारा अविवाहित होने की शर्त लगाकर खोल दिया है, जो अवैध है।
साथ ही न्यायालय ने यह भी माना कि सरकारी नौकरी के लिए महिला को उसके अविवाहित होने के आधार पर वंचित करना उसको भारत के संविधान के अनुच्छेद के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है साथ ही उसकी गरिमा का भी हनन करना है। महिला के विवाहित होने या नही होने से उसको दी जा रही नौकरी के प्रयोजन पर कोई फर्क नहीं पडऩा है।
एकलपीठ न्यायाधीश ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए नियुक्ति नियमावली/ परिपत्र की विवाहित होने की आवश्यक शर्त एवं विज्ञप्ति की शर्त को निरस्त करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए कि राज्य सरकार चाहे तो अविवाहित महिला से अंडरटेकिंग ले सकती हैं और इस संबंध में वर्तमान नियम/ परिपत्र को तदनुसार संशोधित कर सकती है। साथ ही याची को मैरिट अनुसार चार सप्ताह में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति देने के आदेश दिए।