रांची। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने सोमवार को कहा है की कुछ ईसाई मिशनरी संस्थाओं द्वारा सीएनटी- एसपीटी कानून का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नामकुम अंचल के खाता नंबर 3 एवं 142 के प्लॉट नंबर 170, 171, 172,173,174 ,176,177 के कुल 4.23 एकड़ की जमीन की खरीद बिक्री में जमकर गड़बड़ी हुई है ।
प्रदेश भाजपा कार्यालय में सोमवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में प्रतुल शाहदेव ने कहा कि इस जमीन को सर्वप्रथम ब्रदर सिरिल लकड़ा ने वर्ष 2004 -2005 में इन मुंडा खतियान की जमीनों को कौड़ियों के मोल मोल खरीद लिया। रिंग रोड के पास स्थित इस 4.23 एकड़जमीन की कुल कीमत सिर्फ 2.6 लाख लगाई गई। आश्चर्यजनक रूप से ब्रदर सिरिल लाकड़ा ने तीन अलग-अलग दस्तावेजों में अपने तीन अलग-अलग पता का जिक्र किया है । संबंधित अथॉरिटी से परमिशन लेने के लिए भी इन्होंने अपना गलत पता बता कर धोखाधड़ी करने का काम किया है। ब्रदर सिरिल लकड़ा ने किसी दस्तावेज में अपना पता नामकुम बताया किसी में इनका पता गुमला और तीसरे में पुरुलिया रोड, रांची बताया गया ।यह साफ दर्शाता है कि इन्होंने सीएनटी की थाना वार सीमा से बचने के लिए गलत सूचना दी।
ब्रदर लकरा यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने पिछले वर्ष इसी 4.23 ंबतम जमीन को गेल को 4.76 करोड़ में बेच दिया। 13 वर्षों में इस जमीन पर उन्होंने 183 गुणा प्रॉफिट कमाया जो झारखंड में किसी भी ज़मीन में अब तक का संभवत सबसे बड़ा रिकॉर्ड प्रॉफिट मार्जिन होगा। इस जमीन को व्यक्तिगत स्तर पर ब्रदर लकरा ने खरीदा जबकि बेचते समय मिशनरी संस्थाएं सामने आ गई। मिशनरी संस्थाओं में फादर ,ब्रदर और सिस्टर को व्यक्तिगत संपत्ति रखने का कोई हक नहीं फिर भी यह जमीन ब्रदर सिरील लकरा ने अपने नाम पर रजिस्ट्री कराई। ।
गेब्रियल सोसायटी शैक्षणिक संस्था के रूप में निबंधित है और इसका मुख्यालय रोम है। भाजपा लंबे समय से कह रही है कि मिशनरी संस्थाएं सामाजिक कार्यों को छोड़कर दूसरे अनैतिक कार्यों में भी लगे हैं। सोसायटी को जमीन की खरीद और बिक्री में इंवॉल्व होने का कोई हक नहीं था ।लेकिन जिस तरीके से यह पूरा प्रकरण सामने आया है वह साफ इंगित करता है कि बड़े पैमाने पर ऐसे धंधे चल रहे हैं ।गरीब आदिवासियों की जमीन को यहां के स्थानीय फादर और ब्रदर्स को आगे करके खरीदा जाता है और फिर बेचते समय मिशनरी संस्थाएं भी उससे जुड़ जाती हैं और मुनाफा कमाती हैं। झारखंड में यहां के भोले-भाले आदिवासियों को आगे करके मिशनरी संस्थाओं द्वारा जमीन पर कब्जा कराने के ऐसे दर्जनों उदाहरण है।