ऋता शेखर मधु।
लघु विधाओं में क्षणिकाओं का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। क्षणिकाएं अक्सर मारक हुआ करती हैं जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती हैं। किंतु कवयित्री कंचन अपराजिता की क्षणिकाएँ प्रेम से ओतप्रोत कोमल अहसास लिए हैं। अर्थों की गहनता और बारीकी को अक्षुण्ण रखती हुई ये क्षणिकाएं मानस पटल पर अपना स्थान बनाने में पूरी तरह सफल हैं।
सर्वप्रथम बात करती हूँ कलेवर की। यदि अड़हुल के फूल के ऊपर केसरिया चुन्नी डाल दी जाए तो जो खूबसूरती निखर कर आ सकती है, वैसा ही मोहक मुखपृष्ठ है। कवयित्री का सभी के प्रति आभार प्रकट करने की अभिव्यक्ति बहुत सुंदर है। भूमिका में डॉ शैलेश गुप्त वीर जी हैं। उन्होंने क्षणिकाकार कंचन जी की प्रतिभा को बखूबी पहचान दी है। पुस्तक में कोई अनुक्रम नहीं है। सीधे क्षणिकाओं पर ही दृष्टि जाती है।
अब बात करते हैं कुछ क्षणिकाओं की।कवयित्री ने भूतकाल को कितना सटीक संदेश दिया , देखिए|
इस मोड़ को बस पलट कर,
देख सकती हूँ |
तेरे साथ नहीं चल सकती
ऐ अतीत !
इस क्षणिका की सुन्दरता देखिए…
अपने दिल के गम
भुलाने का
सरल तरीका है
जिस अपने की आँखों में
आँसू आये
उसे हँसा दिया जाए|
किसी की प्रशंसा में या प्रेम में गुलाम हो जाने की बहुत प्यारी अभिव्यक्ति है|
तेरे पदचाप पर
चलने जो लगी मैं
अपनी गुलामी तेरे नाम
लिखती गई मैं |
एक कहावत सुनी होगी सबने…चोर की दाढ़ी में तिनका…यह क्षणिका में ढलकर कितनी सुन्दर हो गई|
जब से वो अपनी मुहब्बत का
सबूत देने लगे|
हम उनकी मुहब्बत पर
शक करने लगे |
प्रेम की एक सहज सरल अभिव्यक्ति देखिए |
हथेली पर हिना का रंग
गहरा चढ़ा
चढ़ना ही था
तेरा प्यार जो गहरा था |
आशा- निराशा के बीच झूलते मन की क्षणिका…बेहद खूबसूरत
बावरा मन
अमावस में
ढू़ँढ रहा
चाँद को
ऐसी ही बहुत सारी क्षणिकाएँ हैं जो दिल को छू जाती हैं| कंचन अपराजिता जी को सुन्दर क्षणिका संग्रह के लिए बधाई देती हूँ| आगे भी आप साहित्य जगत को समृद्ध करती रहें, इसके लिए शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ|
ऋता शेखर ‘मधु’
समीक्षाकार- ऋता शेखर ‘मधु’
पुस्तक – केसर
लेखिका – कंचन अपराजिता
प्रकाशन- बोधि प्रकाशन
मूल्य- 150/-
पृष्ठ- 132