पटना। बिहार की धरती सनातन और पुरातन काल से ज्ञान, क्रांति, समर्पण, त्याग, योजक और रणनीतिकारों की रही है। वर्तमान में बिहार के लोगों को अपने ‘स्व’ पर विश्वास करना होगा। उन्हें सशक्त और समृद्ध बिहार बनाने के लिए ईमानदारी व समर्पण के साथ अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना होगा। ये बातें राजनीतिक विश्लेषक एवं सुधारक डॉ. चन्द्र प्रकाश सिंह ने हिन्दुस्थान समाचार से एक विशेष बातचीत के दौरान कहीं।
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बिहार का भविष्य कैसा हो,? इसके लिए हरेक बिहार वासी को उत्तरदायी समाज के रूप में खड़ा होना चाहिएा। राजनीतिक विश्लेषक डॉ. चन्द्र प्रकाश ने कहा कि बिहार की तस्वीर किसी सरकार से सुधरने वाली नहीं है। बिहार को सुधरने के लिए यहां के लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा,वरना सरकारें तो आयेंगी-जायेंगी, लेकिन बिहार जैसा है वैसा ही रहेगा। बिहार के लोगों को अपनी थाती पर विश्वास करना होगा, स्वरोजगार को लेकर आगे बढ़ना होगा। बिहार के लोगों की मानसिकता जब तक नहीं बदलेगी, तब तक बिहार को आगे बढ़ पाना असंभव है। बिहार के लोग देश और दुनिया में जहां भी हैं, उन्हें बिहार के हरेक पहलू के बारे में सोचना चाहिए और अपना-अपना योगदान देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पिछले बीस वर्षों में एक शासक के रूप में नितीश कुमार ने कानून-व्यवस्था, सड़क, बिजली, पानी और आधारभूत संरचना पर जो कार्य किये है, उन्हें नकारा नहीं जा सकता, लेकिन बिहार को इससे आगे बढ़ने के लिए उसे स्वयं बिहारियों का योगदान चाहिए, इसके लिए बिहारी मानसिकता को व्यवस्था के साथ चलने की आदत डालनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि बिहार के लोग जब लालू यादव के जंगलराज से तंग आ गए, तो उन्होंने उसे भी उखाड़ फेंका। मुख्यमंत्री नीतिश उनके विश्वास पर खरा उतरे और जंगलराज से सुशासन की ओर आगे बढ़े, लेकिन जहां तक पलायन का सवाल है, इसके लिए बिहार के लोग ही जिम्मेदार हैं। यहां के लोगों को रंगदारी की प्रवृत्ति से ऊपर उठना होगा। निवेशकों और उद्यमियों का साथ देना होगा। व्यवस्था गलत है, तो उसे बदली जा सकती है, लेकिन उसके बाद भी एक व्यवस्था की आवश्यकता पड़ती है। व्यवस्था परिवर्तन का अर्थ अव्यवस्थित हो जाना नहीं है।
उन्होंने कहा कि बिहार में ‘समग्र क्रान्ति’ और ‘व्यवस्था परिवर्तन’ जैसे नारे लगे, जिसका पूरे देश पर प्रभाव भी पड़ा, लेकिन जब बिहार में व्यवस्था परिवर्तन का समय आया, तो वह अव्यवस्था में बदल गयी। व्यवस्था परिवर्तन की आंधी में बिहार की किसी व्यवस्था के साथ चलने की प्रवृत्ति ही समाप्त हो गई। हर छोटी से बड़ी व्यवस्था के समानान्तर एक व्यवस्था खड़ी कर देना या उस व्यवस्था का अतिक्रमण करना, यही नेतृत्व का गुण माना जाने लगा।
उन्होंने कहा कि बिहार की दूसरी समस्या अत्यधिक राज्यमुखापेक्षी ( राज्य पर निर्भर) होना है। समाजवाद की इस मानसिकता ने भी राज्य से हम कितना और क्या पा जाएं की जो मानसिकता खड़ी की वह स्वयं के उत्तरदायित्व की मानसिकता पर कुठाराघात किया और निजी क्षेत्र के उद्यमियों के साथ भी वैमनस्य उत्पन्न किया।
डॉ. चन्द्रप्रकाश सिंह ने कहा कि बिहार के लोग श्रमिक के रूप में पूरे भारत के उद्यम चलाते हैं, लेकिन बिहार में कोई उद्यम स्थापित करें, तो केवल रंगदारी वसूल करने में विश्वास करते हैं। यदि वे स्वयं स्थानीय उद्यम नहीं स्थापित कर सकते, तो दूसरों का सहयोग कर वहीं रोजगार प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन अपने स्थानीय उद्यमों में विघ्न उत्पन्न कर दो-तीन हजार किलोमीटर दूर तक श्रम करने जाना उन्हें स्वीकार्य है, यह न उनके हीत में है और ना ही बिहार के।
उन्होंने अंत में कहा कि बिहार को आगे बढ़ने के लिए नमक सत्याग्रह से लेकर जेपी आंदोलन तक की विद्रोही मानसिकता से मुक्त होकर एक उत्तरदायी समाज के रूप में खड़ा होना होगा, वरना सरकारें बदलती रहेंगी और समस्याएं यथावत बनी रहेंगी।





