नई दिल्ली। कल्याण सिंह को भारतीय राजनीति में हमेशा एक ताकतवर नेता के तौर पर याद किया जाता रहा है। राम मंदिर आंदोलन में उनकी भूमिका, यूपी में पहली बार बीजेपी की सरकार बनाने में उनका योगदान, देश के सबसे बड़े राज्य का दो बार सीएम बनने का गौरव, कल्याण सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में सबकुछ पाया। 90 का दौर तो उनकी राजनीति के लिहाज से काफी खास रहा। उन्हीं सालों में उन्होंने दो बार यूपी की सत्ता भी संभाली और मंदिर आंदोलन को धार भी दी।
जिस समय कल्याण सिंह के राजनीतिक सितारे बुलंदियों को छू रहे थे, तब बीजेपी के आज के दिग्गज नेता कहां थे? पीएम नरेंद्र मोदी 90 के दौर में क्या काम करते थे? गृह मंत्री अमित शाह को तब क्या जिम्मेदारी मिलती थी? बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की तब राजनीति कैसी चलती थी? एक नजर डालते हैं तीनों नेताओं के तब के राजनीतिक सफर पर-
नरेंद्र मोदी
कल्याण सिंह ने पहली बार 24 जून 1991 को यूपी के सीएम बने थे, उस समय नरेंद्र मोदी बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी संग काम करते थे। एक तरफ उन्होंने आडवाणी संग 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा में सक्रिय भूमिका निभाई, तो वहीं बाद में उन्होंने अपने मिशन कश्मीर को भी धार देने का काम किया। 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा की बात करें तो उस समय लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा नरेंद्र मोदी को समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 25 सितंबर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई उस रथ यात्रा में मोदी लगातार आडवाणी के साथ थे। इसके दो साल बाद 26 जनवरी 1992 को नरेंद्र मोदी बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा का हिस्सा बने। तब दोनों श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने पहुंचे थे। मोदी को 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया था। तब वे गुजरात की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में पहुंच चुके थे। लेकिन 1995 में जब गुजरात में बीजेपी ने पहली बार अपनी सरकार बनाई थी, तब पार्टी अंदरूनी कलह का शिकार हुई. सीएम तो वरिष्ठ नेता केशु भाई पटेल को बनाया गया, लेकिन उस फैसले ने तब शंकर सिंह वाघेला को नाराज कर दिया. उनकी नाराजगी इस कदर बढ़ गई कि जब पटेल अमेरिका दौरे पर गए, उस समय वाघेला ने गुजरात बीजेपी के 55 विधायकों को अपने साथ कर लिया और उन्हें एक निजी विमान के जरिए अहमदाबाद भेज दिया.
अमित शाह
नरेंद्र मोदी की तरह अमित शाह भी काफी कम उम्र में राजनीति के साथ जुड़ गए थे। जब 1991 में कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब शाह यूपी से 1399 किलोमीटर दूर गुजरात में लाल कृष्ण आडवाणी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे। बाद में 1996 में शाह ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए भी यही काम किया था। चुनाव प्रचार करते-करते अमित शाह खुद एक लोकप्रिय नेता में बदल गए और फिर उन्होंने अपना पहला चुनाव साल 1997 में लड़ा।
शाह ने गुजरात की सरखेज विधान सभा सीट पर उपचुनाव लड़ा था और उन्होंने पहली ही बार में जीत हासिल की। इसके बाद से शाह लगातार चार बार जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे।
जेपी नड्डा
अखिल भारतीय विद्यार्थी से अपनी राजनीति शुरू करने वाले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को साल 1991 में पहली बड़ी जिम्मेदारी मिली। वे भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा (BJYM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। इसके ठीक दो साल बाद 1993 में जेपी नड्डा ने पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखा। उन्होंने हिमाचल प्रदेश की बिलासपुर सदर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब उन्हें नेता प्रतिपक्ष नियुक्त कर दिया गया था. अब नड्डा की उस जीत के मायने इसलिए भी काफी ज्यादा रहे क्योंकि 1993 के हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली थी। वो ऐसी हार थी जिसमें सीएम खुद अपनी कुर्सी भी नहीं बचा पाए थे। नड्डा ने 90 के दौर में अपनी चुनावी जीत का सिलसिला जारी रखा। 1993 के बाद 98 के चुनाव में भी जेपी नड्डा विजयी रहे थे। तब बीजेपी ने प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री बनाया था और नड्डा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बने। 90 के दशक में जेपी नड्डा एक बड़े नेता के तौर पर जरूर उभर रहे थे, लेकिन कभी ज्यादा सुर्खियों में नहीं थे।