नई दिल्ली। भारत द्वारा विकसित की गई सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस ने 7 से 10 मई के बीच हुए ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर एक अहम रणनीतिक भूमिका निभाई। यह मिसाइल प्रणाली भारत और रूस की तकनीकी साझेदारी का परिणाम है और इसकी नींव 1993 में रखी गई थी, जब तत्कालीन डीआरडीओ प्रमुख डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम रूस की यात्रा पर गए थे।
डॉ. कलाम ने उस समय मास्को में एक अधूरा सुपरसोनिक दहन इंजन देखा, जिसे सोवियत संघ के विघटन और फंड की कमी के कारण अधूरा छोड़ दिया गया था। यहीं से विचार आया कि भारत इस अधूरी तकनीक को अपने मिशन के साथ जोड़कर एक नई मिसाइल विकसित कर सकता है।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस की स्थापना 1998 में हुई, जब भारत और रूस के बीच एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते के तहत डीआरडीओ और रूस की कंपनी एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPOM) ने मिलकर ब्रह्मोस एयरोस्पेस नामक संयुक्त उद्यम बनाया। इस साझेदारी में भारत की हिस्सेदारी 50.5% और रूस की 49.5% थी।
इसका उद्देश्य था एक अत्याधुनिक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल विकसित करना, जो तेज, सटीक और बहुपरिस्थिति उपयोग योग्य हो। पहला फंडिंग अनुबंध 9 जुलाई 1999 को हुआ, जिसमें रूस से 123.75 मिलियन डॉलर और भारत से 126.25 मिलियन डॉलर की राशि निवेश की गई। उसी साल दोनों देशों की प्रयोगशालाओं में तकनीकी विकास शुरू हुआ।
ब्रह्मोस का पहला सफल परीक्षण 12 जून 2001 को ओडिशा के चांदीपुर स्थित अंतरिम परीक्षण रेंज में हुआ। यह प्रक्षेपण भूमि आधारित लांचर से किया गया था और इसके बाद से ब्रह्मोस ने कई सफल परीक्षण पूरे किए। 2001 में ही ब्रह्मोस ने अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय मौजूदगी MAKS-1 मास्को एयर शो में दर्ज कराई।
इसके बाद मिसाइल को भारत की तीनों सेनाओं—थल सेना, नौसेना और वायु सेना—में शामिल कर लिया गया। ब्रह्मोस की खासियत इसकी 2.8 मैक गति है, जो इसे ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना तेज बनाती है। इसकी रेंज और मारक क्षमता ने भारत को एक निर्णायक सामरिक बढ़त दी है।
इस मिसाइल को भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) के तहत विकसित तकनीक का लाभ मिला। यह वही कार्यक्रम है जो 1983 में भारत को मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस ने अपनी ताकत का पुनः प्रदर्शन किया, जब इसका प्रयोग पाकिस्तान के अंदर स्थित महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों पर सटीक हमलों के लिए किया गया। रक्षा सूत्रों के अनुसार, इन हमलों ने दुश्मन की क्षमताओं को बुरी तरह प्रभावित किया और भारतीय सैन्य रणनीति की सफलता को उजागर किया।
ब्रह्मोस सिर्फ एक मिसाइल नहीं, बल्कि भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुकी है। यह भारत-रूस मैत्री और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग का एक आदर्श उदाहरण है।










