रांची: झारखंड की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले सरयू राय ने झारखंड विधानसभा चुनाव(Jharkhand Vidhansabha) के ठीक पहले पॉलिटिकल मास्टर स्ट्रोक (MasterStroke) लगा दिया है। जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय जदयू(JDU) में शामिल हो गए हैं। झारखंड में जदयू को एक नेता मिल गया है। चुनाव से पहले उनके इस कदम ने राज्य की राजनीति में कई तरह की चर्चा शुरू कर दी है। आने वाले दिनों में इसके कई तरह परिणाम देखने को मिल सकते हैं। उनके इस पॉलिटिकल स्टैंड से झारखंड के राजनीतिक समीकरण को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।
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राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जदयू में सरयू राय के शामिल होने से जमशेदपुर पूर्वी सीट से उनका दोबारा चुनाव लड़ना पक्का माना जा रहा है। क्योंकि, लंबे समय से जमशेदपुर पूर्वी सीट पर काबिज रहे रघुवर दास(Raghubar Das) अब ओडिशा के राज्यपाल बन चुके हैं। ऊपर से केंद्र में मोदी सरकार बनाने में जदयू ने अहम भूमिका निभाई। लिहाजा, सरयू राय की जदयू में वापसी से झारखंड में एनडीए फोल्डर(NDA Folder) का दायरा बढ़ना तय है।
सरयू राय और रघुवर दास के बीच का मतभेद जगजाहिर है। ऐसे में अमित शाह के खास कहे जाने वाले रघुवर दास अपनी राजनीतिक जमीन शिफ्ट होने देना नहीं चाहेंगे लेकिन यह भी स्पष्ट है कि भाजपा के पास जमशेदपुर पूर्वी सीट के लिए कोई बड़ा चेहरा फिलहाल नहीं है। दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं के स्तर पर सारे समीकरण सेट हो चुके हैं। क्योंकि, यहां एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। ऐसे में किसी तीसरे नेता की दखलअंदाजी का कोई सवाल ही नहीं उठता।
जानकाराें का मानना है कि राजनीतिक बदलाव का असर मांडू और छतरपुर सीट पर भी देखने को मिल सकता है
दरअसल, जदयू के झारखंड अध्यक्ष खीरु महतो मांडू के विधायक रहे हैं। वर्ष 2019 में भाजपा की टिकट पर जेपी पटेल यहां से विधायक बने थे लेकिन वर्तमान लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस में शामिल होकर हजारीबाग से चुनाव लड़े थे। इसलिए खीरु महतो की कोशिश है कि उनके पुत्र दुष्यंत को वहां से टिकट मिले। वैसे आजसू का भी इस सीट पर दावा है। तीसरी सीट छतरपुर को लेकर है। वहां से पूर्व में विधायक रहीं सुधा चौधरी झारखंड में मंत्री रह चुकी हैं।
सरयू राय की अपनी पार्टी भारतीय जन माेर्चा (भाजमो) के जदयू में मर्जर की तो यह समझना जरूरी है कि सरयू राय इस पार्टी के संरक्षक हैं। इस प्रक्रिया को पूरा करना पार्टी के अध्यक्ष का काम है। एक और खास बात है कि 2019 में रघुवर दास के मुख्यमंत्री रहते हुए सरयू राय ने अपनी जमशेदपुर पश्चिम सीट के बजाय जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव लड़कर उन्हें मात दे दी थी। आज भी इस बात की चर्चा होती है कि 2019 के चुनाव में सरयू राय के स्टैंड की वजह से भाजपा खासकर रघुवर दास के खिलाफ एक नैरेटिव सेट हो गया था,जिसका खामियाजा भाजपा को चुनाव में भुगतना पड़ा था।
इस बार कुरमी वोटों की होगी खूब घेराबंदी
इस बार झारखंड के चुनाव में कुरमी वोटों को लेकर जबरदस्त घेराबंदी होगी। नीतीश कुमार की पार्टी भी कुरमी वोटों पर डोरा डालेगी तो आजसू भी वही काम करेगा। फिर जयराम महतो की पार्टी भी उसी राह पर चलेगी। मतलब सबकी नजर 2024 के विधानसभा चुनाव में कुरमी वोटों पर रहेगा। वर्ष 2019 में तो भाजपा झारखंड में विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ी थी। आजसू के साथ भी उसका गठबंधन नहीं था। जदयू के साथ भी नहीं था। वैसे, सरयू राय ने जदयू में शामिल होकर भाजपा के लिए परेशानी ही पैदा की है। अब देखना दिलचस्प होगा कि झारखंड के कितने सीटों पर जदयू दावा करता है। फिर कितनी सीटों पर आखिरकार समझौता हो पता है। झारखंड में जदयू के पास कोई बड़ा नेता नहीं था।
आजसू को मिल सकता है झटका
सवाल उठ रहा है कि कुरमी की राजनीति के दम पर खड़ी आजसू को 2024 में कितनी बड़ी चुनौती मिलेगी। यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि खतियानी नेता जयराम महतो की पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अच्छा परफॉर्मेंस किया है। मतलब आजसू हो या जयराम महतो की पार्टी अथवा फिर नीतीश कुमार की पार्टी हो, सभी लोग कुरमी वोटों पर जोर लगाएंगे। झारखंड में कुरमी वोटों का प्रतिशत कोई 25 प्रतिशत कहता है तो कोई 16 प्रतिशत, जो भी हो लेकिन अभी तक कुरमी वोटों पर झारखंड में सुदेश महतो का अधिकार था लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। जयराम महतो ने तो उसमें सेंध लगा दी है। यदि कुरमी वोट में नीतीश कुमार भी सेंध लगाते हैं, तो निश्चित रूप से आजसू का अधिकार टूट जाएगा और यह आजसू के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। वैसे, लोकसभा चुनाव में गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से जयराम महतो ने उम्मीदवारी की थी। लगभग 3. 50 लाख वोट लाकर सबको चौंका भी दिया था। इसके अलावे झारखंड के कई विधानसभा क्षेत्र में भी जयराम महतो की पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया था।
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