Khunti। वैसे तो पूरे राज्य में भाजपा की हार हुई है, पर भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली खूंटी जैसी सीट से पांच बार लगातार विधायक रहे और राज्य के पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह की करारी शिकस्त ने कई सवाल खड़े किये हैं।
तोरपा से तीन के विधायक रहे कोचे मुंडा के पराजय को भी लोग विधायक कोचे मुंडा की जनता से दूरी के साथ ही भाजपा संगठन की कमजोरी के रूप में देख रहे हैं।
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खूंटी जिले से भाजपा का सुपड़ा साफ होने के संबंध में लोगों की अलग-अलग राय है, लेकिन सभी एक बात पर सहमत हैं कि सरकार की मैयां सम्मान योजना, बिजली बिल और कृषि ऋण की माफी ने झामुमो की जीत में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। यही कारण है कि केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, हिमंत विसवा सरमा जैसे स्टार प्रचारक भी हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन के सामने फेल हो गये।
भाई प्रेम महंगा पड़ा नीलकंठ सिंह मुंडा को
खूंटी के सबसे कद्दावर भाजपा नेता के रूप में शुमार नीलकंठ सिंह मुडा की करारी शिकस्त के संबंध में क्षेत्र के लोगों का कहना है कि वर्तमान विधायक को लोकसभा चुनाव के दौरान अपने बड़े भाई और वर्तमान कांग्रेस सांसद कालीचरण मुंडा के पक्ष में अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करना महंगा पड़ गया।
अपनी स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्व पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष पद्मभूषण कड़िया मुंडा कहते हैं कि नीलकंठ सिंह मुंडा ने विधायक रहते हुए लोकसभा चुनाव के दौरान अपने बड़े भाई और कांग्रेस उम्मीदवार कालीचारण मुंडा के पक्ष में काम किया।
कड़िया मुंडा ने कहा कि 2019 के संसदीय चुनाव में भी नीलकंठ सिंह मुंडा ने भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा को हराने का प्रयास किया था। उन्होंने कहा कि नीलकंठ सिंह मुंडा ने भाजपा विधायक रहते हुए भी पार्टी को धोखा दिया। कड़िया मुंडा ने कहा कि भाई-भाई की बात अलग है। बाप-बेटा भी अलग-अलग पार्टी में रहेते है, पर पार्टी को धोखा देना ठीक नहीं है।
उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले आप लोगों को हाथ छाप में वोट देने लिए कहते थे और आज कमल को विजयी बनाने को कहते हैं, जनता इतनी बेवकूफ नहीं है। इसी की सजा नीलकंठ सिंह मुंडा को मतदाताओं ने दी है।
कड़िया मुंडा ने कहा कि पांच बार विधायक बनने में नीलकंठ को कोई विशेष योगदान नहीं है। 50 वर्षों तक यहां घसीट-घसीट कर संगठन को चलाया है।
पुराने स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी बनी हार का कारण
खूंटी और तोरपा सीट से भाजपा की हार के संबंध में पार्टी के ही कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि क्षेत्र के पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी हार की बड़ी वजह रही। आरोप है कि चुनाव कें दौरान पुराने कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं दी गई। यही कारण है कि ऐसे कार्यकर्ताओं ने चुनाव कें दौरान निष्क्रिय दिखे।
उल्लेखनीय है कि खूंटी के कर्रा रोड, पिपराटोली आदि इलाके को भाजपा का गढ़ मामना जाता है, पर इस बार वहां के मतदाताओं ने नीलकंठ सिंह मुंडा को नकार दिया। चुनाव के दौरान भाजपा के कई समर्थकों ने कहा भी था कि इस बार उन्होंने रामजी के हथियार तीर-धनुष के पक्ष में मतदान किया है।
भाजपा विहीन हुआ खूंटी संसदीय क्षेत्र
एक समय भाजपा का गढ़ समझे जानेवाले खूंटी संसदीय क्षेत्र पूरी तरह भाजपा विहीन हो गया। एक समय खूंटी लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के सांसद के साथ ही तोरपा, खूंटी, सिमडेगा, तमाड़ और खरसावां में पार्टी कें विधायक थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा ने खूंटी से और कोचे मुंडा ने जीत दर्ज की थी, पर वर्तमान में खूंटी संसदीय क्षेत्र की सभी छह सीटों पर इंडी गठबंधन का कब्जा है।