- करोड़ों की लूट का पर्दाफाश संभावित
खलारी। रांची जिले के खलारी प्रखंड स्थित बमने पंचायत में नहीं है एक भी मुस्लिम परिवार, फिर भी सैकड़ों फर्जी मुस्लिम नामों से निकाले गए लाखों रुपए लोकपाल ने खुद मानी गड़बड़ी, 14 पंचायतों में फर्जीवाड़ा घोटाले की जांच से हो सकता है बड़ा खुलासा
झारखंड में मनरेगा योजना के नाम पर बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े और सरकारी राशि की लूट का सनसनीखेज मामला सामने आया है। खलारी प्रखंड के बमने पंचायत में एक भी मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति निवास नहीं करता, फिर भी सैकड़ों मुस्लिम नामों से जॉब कार्ड बनाकर लाखों रुपए की अवैध निकासी की गई है।
यह भी पढ़े : मुख्यमंत्री योगी ने कासगंज और संभल में हुए हादसाें का संज्ञान लिया
जिन नामों से जॉब कार्ड जारी किए गए, उनमें मुमताज बेगम, मुन्ना अंसारी, मोहम्मद नईम सिद्दीकी, रूबी परवीन, जमीला खातून, फिरोज अंसारी, हसीबुल अंसारी जैसे सैकड़ो नाम शामिल हैं, जबकि इस पंचायत के वोटर लिस्ट में इनका कोई नाम नहीं है। हैरानी की बात यह है कि इन नामों पर बाकायदा आधार व वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों के आधार पर कार्ड बनाए गए और कार्यों में भुगतान भी हुआ।
डोभा निर्माण में हुआ भुगतान, हकीकत में मौजूद नहीं लाभार्थी
हसीबुल अंसारी नामक फर्जी कार्डधारी को बमने पंचायत के मनातु गांव में गीता देवी की जमीन पर हुए डोभा निर्माण कार्य में 2022-2025 के बीच भुगतान किया गया। वहीं चुरी दक्षिणी पंचायत में भी तेतरी देवी की जमीन पर ऐसे ही दर्जनों फर्जी लाभार्थियों के नाम पर पैसा निकाला गया।
फर्जीवाड़े का नेटवर्क सिर्फ एक पंचायत नहीं, पूरे प्रखंड में फैला!
लोकपाल पुष्पलता जायसवाल ने मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि, “जब बमने पंचायत में एक भी मुस्लिम नहीं है, तो इन नामों पर कार्ड जारी होना सीधा फर्जीवाड़ा है। ये मामला केवल बमने तक सीमित नहीं है, खलारी के 14 पंचायतों में ऐसे ही फर्जी जॉब कार्ड बनाए गए हैं। यदि निष्पक्ष जांच हो, तो करोड़ों के घोटाले का पर्दाफाश संभव है।”
रोजगार सेवक और पंचायत सेवक पर शक की सुई
जॉब कार्ड बनाने से लेकर भुगतान तक की पूरी प्रक्रिया में पंचायत सेवक और रोजगार सेवक की भूमिका संदेह के घेरे में है। ऐसे में बिना उच्चस्तरीय मिलीभगत के इतनी बड़ी हेराफेरी संभव नहीं मानी जा रही।
अब तक क्या हुआ?
फिलहाल इस घोटाले को लेकर न तो किसी पर प्राथमिकी दर्ज हुई है और न ही कोई जांच समिति गठित की गई है। लेकिन जैसे-जैसे दस्तावेज और नाम उजागर हो रहे हैं, मामला तूल पकड़ता जा रहा है।
केंद्र और राज्य सरकार के लिए चुनौती
यह मामला न सिर्फ ग्रामीण विकास की सबसे बड़ी योजना की साख पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि प्रशासनिक निगरानी और डेटा सत्यापन की खामियों को भी उजागर करता है। अब देखना यह है कि सरकार इस विस्फोटक घोटाले पर क्या कदम उठाती है।