पश्चिमी सिंहभूम। पश्चिमी सिंहभूम जिले के घने सारंडा जंगल में नक्सलियों की ओर से बिछाए गए आईईडी विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हुई हथिनी की इलाज के दौरान मौत हो गई। शनिवार देर रात उसकी सांसें थम जाने से न केवल वन्यजीव प्रेमी स्तब्ध हैं, बल्कि यह घटना झारखंड वन विभाग की कार्यशैली और गश्त व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है।
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सूत्रों के मुताबिक, घायल हथिनी को बीते दिनों सारंडा के जंगल में विस्फोट से जख्मी हालत में पाया गया था। ग्रामीणों की सूचना पर वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और उसे उपचार देना शुरू किया गया। शुरुआती इलाज के बाद उसकी हालत में कुछ सुधार भी दिखा था — देर रात उसने फल और सब्जी तक खाए थे, जिससे टीम को उम्मीद जगी थी कि वह बच जाएगी। लेकिन रविवार तड़के हथिनी की मौत हो गई।
स्थानीय लोगों और वन अधिकारियों का मानना है कि इलाज में हुई देरी ही हथिनी की मौत की मुख्य वजह बनी। विस्फोट में उसका एक पैर बुरी तरह जख्मी हुआ था और संक्रमण फैलने से हालत बिगड़ती चली गई। ग्रामीणों का आरोप है कि यदि वन विभाग जंगल में नियमित गश्त करता, तो घायल हथिनी को समय पर उपचार मिल सकता था।
इस घटना के बाद सारंडा के आसपास के इलाकों में वन्यजीव संरक्षण को लेकर आक्रोश और चिंता का माहौल है। लोगों ने नक्सलियों की इस अमानवीय हरकत की निंदा करते हुए जंगलों में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की है।
वन विभाग की टीम ने रविवार को जंगल में ही हथिनी का पोस्टमार्टम कराया। अधिकारियों ने बताया कि रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के सही कारणों की पुष्टि की जाएगी। विभागीय आंकड़ों के अनुसार, सारंडा के जंगल में नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी की चपेट में अब तक तीन हाथियों की जान जा चुकी है।
सारंडा झारखंड का वह इलाका है, जहां नक्सली अक्सर सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए बारूदी सुरंग बिछाते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इन विस्फोटों का शिकार बेबस वन्यजीव हो रहे हैं। हथिनी की मौत ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर जंगलों में गश्त और निगरानी के नाम पर चल रही योजनाएं कितनी कारगर हैं और क्या वाकई वन विभाग अपने संरक्षण दायित्वों का पालन कर पा रहा है।