रामगढ़। जिले के रउता के जंगल में जिन भूमाफियाओं ने वन भूमि पर वर्चस्व को जमाने का काम किया, उनको वन अधिकारी अब माफी भी दे रहे हैं। वन विभाग ने इंसाफ करने का यह नया तरीका अपना लिया है। हालांकि यह तरीका सुनने में काफी अटपटा लगेगा, लेकिन इस बात की पुष्टि खुद कुजू रेंजर केदार राम ने की है। माफी देने की बात इस बात की ओर इशारा कर रही है कि वन विभाग के अधिकारी और भू माफियाओं के बीच कोई मजबूत गठजोड़ है। कुज्जू प्रक्षेत्र के रउता के जंगल में कई एकड़ जमीन पर भूमाफिया ने चहारदीवारी का निर्माण कर दिया था। वह चहारदीवारी आज भी जंगल में कायम है। लेकिन जब कार्रवाई करने रेंजर केदार राम वहां पहुंचे तो उन्होंने कुछ फीट की बाउंड्री को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद मीडिया वालों से उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि इस मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं किया गया है। भू माफियाओं ने अपनी गलती स्वीकार की है। इसलिए विभाग की ओर से उन्हें माफ कर दिया गया है। चहारदीवारी को ध्वस्त कर देना ही वन विभाग का लक्ष्य था। केदार राम ने उनसे यह भी नहीं पूछा कि बाउंड्री निर्माण के दौरान कितने पेड़ों को काटा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि जंगल की जमीन को किसी भी व्यक्ति को बेचने नहीं दिया जाएगा। इसलिए रउता पांडे मंदिर के पास जंगल में की गई बाउंड्री को तोड़ा गया है। उन्होंने भू माफियाओं को यहां तक क्लीन चीट दे दी, कि जंगल में कुछ जमीन रैयत ग्रामीणों का भी है। लेकिन जब उनसे रैयतों का नाम पूछा गया उनके द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया। इसका मतलब है कि वन विभाग के पास इस बात की भी खबर नहीं है कि वह जमीन किसके नाम पर दर्ज है। भू माफियाओं के द्वारा फर्जी कागजात बनाकर वन क्षेत्र की भूमि को कब्जा करने का खेल खेला जा रहा है। इसमें वन विभाग के अधिकारी ही उनकी भरपूर मदद कर रहे हैं। जिस जमीन को वन विभाग के अधिकारियों के द्वारा रैयती जमीन होने का दावा किया जा रहा है, अब उसकी जांच होना बेहद जरूरी है। रउता और नई सराय के जंगली क्षेत्र में ऐसे कई स्थान हैं जहां फर्जी दस्तावेजों पर भू माफियाओं ने जमीन बेचने का काम किया है। वहां भू माफियाओं के द्वारा वन विभाग के पीलर को भी उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगा दिया गया है। इस पूरे गोरखधंधे में वन विभाग के अधिकारियों की संलिप्तता अब उजागर हो रही है। जितनी जमीन भू माफियाओं ने बेची है उसकी रजिस्ट्री नहीं हुई है। एग्रीमेंट के आधार पर लोगों को जमीन दिए जा रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि दाल में कुछ काला जरूर है।
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