ग्वालियर। इस साल 15 जनवरी 2023 को मकर संक्रांति मनाई जा रही है। वहीं लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या यानी एक दिन पहले मनाया जाता है। ऐसे में इस साल लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी दिन शनिवार को मनाया जाना चाहिए। 14 जनवरी को लोहड़ी की पूजा का शुभ मुहूर्त रात 8.57 बजे पर है। हालांकि कहीं कहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 जनवरी को भी लोहड़ी मनाई जाएगी।
बालाजी धाम काली माता मंदिर के ज्योतिषाचार्य डॉं सतीश सोनी के अनुसार माघ मास में सूर्य अस्त के बाद और मकर संक्रांति से पहली रात लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व अधिकांश से 13 जनवरी को पड़ता है। लेकिन इस बार यह पर्व 14 जनवरी को हस्त नक्षत्र के संयोग में मनाया जाएगा। लोहड़ी के दिन अग्नि में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाने का रिवाज होता है। इसके बाद इसे प्रसाद में खाया जाता है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण जब तिल युक्त आग जलती है तब वातावरण में बहुत सा संक्रमण समाप्त हो जाता है। और लोहड़ी की परिक्रमा करने से शरीर में स्फूर्ति आती है। साय काल लोहड़ी जलाने का अर्थ है। कि अगले दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश पर उसका स्वागत करना। सामूहिक रूप से आग जलाकर सर्दी भगाना और मूंगफली, तिल, गजक, रेवड़ी खाकर शरीर को सर्दी के मौसम में अधिक समृद्ध बनाना ही लोहड़ी पर्व मनाने का उद्देश्य है। हस्त नक्षत्र में लकडिय़ां, रेवड़ी, तिल आदि अग्नि के रूप में लोहड़ी पूजन कर यह पर्व संपूर्ण भारत में धार्मिक आस्था ऋतु परिवर्तन तथा कृषि में रवि फसल से संबंधित परिवर्तन का सूचक है एवं आपसी सौंदर्य का परिचायक है।
माता सती से जुड़ा है त्यौहार
पौराणिक मान्यताओं में सती के त्याग के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। कथा अनुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर देवों का देव महादेव की पत्नी सती ने आत्मदाह कर लिया था। उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता है। कुछ लोगों का मानना है। कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में भी यह पर्व मनाया जाता है।और यह भी मान्यता है। कि सुंदरी एवं मंदरी नाम की दो लड़कियों को दुष्ट राजा से बचाकर एक दुल्ला भट्टी नामक डाकू ने किसी अच्छे लडक़े से उनकी शादी करवा दी थी।
फसल और मौसम का भी उत्सव
बैसाखी त्योहार की तरह लोहड़ी पर्व का भी संबंध पंजाब के गांव फसल और मौसम से ही है। इस दिन से मूली और गन्ने की फसल बोई जाती है। इससे पहले रवि की फसल काटकर घर में रखी जाती है।