उदयपुर। उदयपुर जिले में 18 सितम्बर से चल रही पशुचिकित्सकों की बेमियादी हड़ताल से परेशान हो रहे पशुपालकों ने चिकित्सकों से हड़ताल खत्म कर बीमार पशुओं को संभालने की गुहार की है। पशुपालकों ने मुख्यमंत्री से भी आग्रह किया है कि पशु चिकित्सकों से वार्ता कर हड़ताल तुरंत खत्म कराने की राह प्रशस्त की जाए। पशुपालकों की चिंता लम्पी रोग के पुनः दिखाई देते लक्षणों और गंभीर बीमारी से पीड़ित पशुओं की मौत को लेकर है। अपने पालतू पशुओं की बिना उपचार मौत पशुपालकों को आहत कर रही है।
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उदयपुर स्थित बहुउद्देशीय पशुचिकित्सालय परिसर में शनिवार को उदयपुर एवं डूंगरपुर जिले के पशुपालक पहुंचे। सागवाड़ा से आए दयालाल पटेल ने बताया कि वह गंभीर बीमारी से ग्रसित अपनी भैंस का उपचार कराने के लिए उदयपुर आए, किन्तु पशुचिकित्सकों की हड़ताल के कारण उनकी एक लाख रुपये की भैंस का उपचार नहीं हो पा रहा है। पुष्कर डांगी शोभागपुरा, रोशनलाल माली, मोहन डांगी, भंवर लाल डांगी, तोला राम आदि पशुपालकों ने भी अपने बीमार पशुओ का उपचार नहीं होने की पीड़ा जाहिर की। चीरवा निवासी पशुपालक राधेश्याम मेनारिया ने बताया कि गंभीर रूप से घायल वन्यजीव लंगूर को ग्रामीण क्षेत्र में उपचार नहीं मिलने से वन विभाग उदयपुर मुख्यालय को भेजा गया, किन्तु उदयपुर में भी पशुचिकित्सकों की हड़ताल के चलते विशेषज्ञ सेवा नहीं मिल पाई। इससे वन्यजीव को बचाने में कठिनाई आ रही है।
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जिले के पशुपालकों चौसर माली भूपालपुरा, चतुर्भुज सुथार भुवाणा, योगेश गायरी तीतरड़ी, दौलत सिंह गोगुन्दा ने बताया कि वे दूरदराज से अपने पशुओं के खून के सैम्पल जांच कराने के लिए उदयपुर आये हैं, किन्तु पशुचिकित्सकों की हड़ताल के कारण हमें निराश होकर घर लौटना पड़ रहा है। पशुपालकों ने बताया कि जिले में कई गायों में लम्पी बीमारी के लक्षण भी मिल रहे हैं। एक गाय में लम्पी बीमारी के लक्षण से मौत हो गई, किन्तु विशेषज्ञ सेवा के अभाव में इसका निदान नहीं हो पा रहा है।
पशुपालकों ने बताया कि मुख्यमंत्री की जोर-शोर से प्रचारित की जा रही कामधेनु बीमा योजना धरातल पर फेल होती नजर आ रही है, क्योंकि अब तक पशुचिकित्सकों की हड़ताल के कारण पशु बीमा नहीं हुआ है और न ही हड़ताल के चलते पशुओं की मौत होने पर पोस्टमार्टम होना संभव है। पोस्टमार्टम के अभाव में क्लेम मिलना भी संभव नहीं है। कामधेनु बीमा योजना केवल चुनावी हथकंडा बनकर कर रह गई है। आचार संहिता पूर्व महंगाई राहत शिविरों में पंजीकृत 80 लाख पशुओं का बीमा होना नामुमकिन नजर आ रहा है।
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जिले के अग्रणी पशुपालक एवं पशुप्रेमी डिंपल भावसार (एनिमल फीड सोसायटी) व कैलाश वैष्णव (वृक्ष संस्थान) ने बताया कि उनकी संस्था लावारिस पशुओं को पशुचिकित्सालय लाकर उपचार करवाती है, किन्तु पशुचिकित्सकों की हड़ताल के कारण पशुओं की मौत हो रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि मुख्यमंत्री शीघ्र पशुचिकित्सकों की बेमियादी हड़ताल खत्म कराकर पशुधन को बचाने का प्रयास करें।
इधर, पशुचिकित्सक संघ के अध्यक्ष डॉ. दिनेश चन्द्र सारड़ा एवं महासचिव डॉ. सुरेश जैन, डॉ. ओम प्रकाश साहू का कहना है कि पशुपालकों एवं पशुप्रेमियों की पीड़ा से वे अवगत हैं और स्वयं भी आहत हैं, लेकिन उनकी मांगें भी न्यायोचित हैं। सरकार के सकारात्मक रुख का उन्हें भी इंतजार है। जिले के संयुक्त निदेशक डॉ. शक्ति सिंह ने बताया कि जिले के समस्त 82 डॉक्टर हड़ताल पर हैं। गौरतलब है कि पशुचिकित्सक नॉन प्रेक्टिसिंग अलाउंस (एनपीए) की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं, एनपीए देश के 17 राज्यों में लागू हो चुका है, राजस्थान सरकार ने इस पर निर्णय नहीं किया है। यह मांग लम्बे समय से की जा रही है।