KHUNTI: गोस्वामी तुलसीदासकृत रामचरित मानस की चौपाइयां अब झारखंड की मुंडारी भाषा में भी गूंजेंगी। मुरहू प्रखंड के चारिद गांव में रहने वाले छत्रपाल सिंह मुंडा ने विश्व की कई भाषाओं में अनुदित इस महाग्रंथ को क्षेत्रीय भाषा मुंडारी में पद्यानुवाद प्रस्तुत किया है। झारखंड में पहली बार किसी आदिवासी मानस मर्मज्ञ ने लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने वाली रामायण को अपनी भाषा में लिपिबद्ध किया है।
प्रखर आदिवासी मानस मर्मज्ञ छत्रपाल सिंह मुंडा के ताऊ (बड़े पिता) मझिया मुंडा इससे पहले इस महाकाव्य का गद्यानुवाद कर चके हैं। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उप निदेशक पद से 2012 में सेवानिवृत्त होने के बाद से छत्रपाल सिंह मुंडा अपने गांव में रहते हैं। अध्ययन में उनकी विशेष रुचि है। पुश्तैनी खेत हैं। अब उन्होंने खुद को किसान के रूप में ढाल लिया है।
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मुंडा ने कहते हैं, ‘ ताऊ के इस जुनून को देखकर मेरे मन में भी रामचरित मानस का पद्यानुवाद करने की इच्छा जागृत हुई। मगर उस दौरान केंद्र सरकार के सूचना एवं जनसपंर्क विभाग में नियुक्ति हो जाने से इसमें विघ्न पड़ गया। फिर भी अनुवाद करता रहा। सही न लगने पर फाड़ देता। लिखने-फाड़ने का यह सिलसिला कई वर्ष चला। सेवानिवृत्ति के बाद पैतृक गांव चला आया। खुद को खेती-किसानी में खपा लिया। …और 2021 में फिर कलम उठा ली। पद्यानुवाद करने का संकल्प लिया और डेढ़ वर्ष के परिश्रम के बाद सभी सातों कांड का मुंडारी भाषा में अनुवाद संभव हो पाया।
उन्होंने बताया कि अनुदित इस ग्रंथ का अभी प्रकाशन नहीं हो पाया है। प्रसिद्ध समाजसेवी डॉ. निर्मल सिंह ने इसके छपवाने का जिम्मा लिया है। उम्मीद है जल्द ही मुंडेरी भाषा में अनुदित रामचरित मानस जनमानस के हाथों में होगी। मुंडा इससे पहले हनुमान चालीसा का मुंडारी भाषा में पद्यानुवाद कर चुके हैं। इसका सचित्र प्रकाशन महात्मा नारायण दास ग्रोवर शोध संस्थान खूंटी ने किया है।
मुंडारी भाषा के विद्वान छत्रपाल सिंह मुंडा को अयोध्या में भगवान श्रीराम के नवनिर्मित मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र से निमंत्रण भेजा गया गया। वह कहते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने का वे हर संभव प्रयास करेंगे।