पाकुड़। बेमौसम की बारिश से आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। खासकर दीपावली के मद्देनजर दीए बनाने में जुटे कुम्हारों के चाक की गति थम सी गई है। दीपावली में दीए वगैरह बेचकर अपना घर रौशन करने की मंशा पर भी पानी फिरता देख वे मायूस हो उठे हैं। कुम्हार रंजीत पंडित व शंकर पंडित बुधवार दोपहर से छाए बादलों के चलते दीए सूख नहीं पाए। फिर आधी रात के बाद से जारी बेमौसम की बारिश के चलते दीया बनाने का काम भी धीमा पड़ गया है। वजह बना भी लें तो सुखाएँ कहाँ।दूसरे दीपावली के दिन तक पका न सके तो सारी मेहनत बेकार चली जाएगी। उन्होंने बताया कि बाजार के माहौल को देखकर हमें लगा था कि इस बार दीपावली में दीए की मांग बढ़ सकती है। इसके लिए हमने अतिरिक्त मेहनत भी शुरू कर दी थी। दीए बनाए भी,लेकिन तीन दिनों से धूप ही गायब है।
फलस्वरूप सुखाने और पकाने की कौन कहे कच्चे दीयों को सहेज कर रखना भी कठिन हो गया है। मांग बढ़ने के बावत उन्होंने बताया कि इस बार कई लोगों ने पहले से ही दीयों का ऑर्डर दे रखा है।इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न संगठनों समितियों के द्वारा भी घर-घर दीए बांटने के चलन से भी हमारा उत्साह बढ़ा है। वे कहते हैं शहर व आसपास के इलाकों को मिलाकर तकरीबन एक सौ कुम्हार परिवार दीए वगैरह बनाने का काम करते हैं। पिछले साल कुछ लोगों ने नमूना देकर नये-नये डिजाइन के आकर्षक दीए वगैरह बनाने को कहा था।
रंजीत बताते हैं पहले तो थोड़ी झिझक हुई कि ऑर्डर के मुताबिक बना सकूँगा या नहीं।फिर दो चार बार कोशिश की और सफल हो गया, जिससे हमारा उत्साह तो बढ़ा ही कमाई भी अच्छी हुई। यही वजह है कि हमने पहले से ही नये-नये डिजाइन के आकर्षक दीए बनाने में जुट गए, लेकिन बेमौसम की बारिश ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उन्होंने बताया कि अब तो मिट्टी भी महंगी मिलने लगी है। फिर उसे सामान बनाने के लिए तैयार करने में भी काफी मेहनत करनी पड़ती है।कभी कभी तो पूरे परिवार को भी इसमें लग जाना पड़ता है। साथ ही उदासी भरे शब्दों में कहा धंधे से मेहनत के मुताबिक कमाई न देख नई उम्र के बच्चे अब इस काम को करना नहीं चाहते हैं।वे लोग बेहतर कमाई के मद्देनजर दूसरे काम धंधे में लग गए हैं। साथ ही कहा कि सरकार से भी हम कुम्हारों आज तक किसी भी तरह की कोई सहायता नहीं मिली है।कम से कम बिजली से चलने वाली चाक ही दे देती तो हमारा काम भी आसान होता।