खूंटी। जनजातीय बहुल खूंटी जिले की लगभग 80 फीसदी आबादी पूर्ण रूप से कृषि पर आधारित है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि जिला गठन के 23 वर्षों के बाद भी अब तक इस जिले में कोई उद्योग-धंधा नहीं खुला लेकिन खूंटी जिला आम, तरबूज, गेंदा फूल, लेमनग्रास, ड्रैगन फ्रूट सहित कई अन्य कृषि उत्पादों का हब बनता जा रहा है। इसके साथ जिले में गन्ने की खेती भी प्रचुर मात्रा में की जाती है।
ईख की सबसे अधिक खेती मुरहू प्रखंड में की जाती है। इस प्रखंड के बीरमकेल, दरला, सुंदारी, सारिदकेल सहित कई अन्य गांवों के लगभग डेढ़ सौ एकड़ खेत में गन्ने की खेती की जाती है। इसके अलावा कर्रा, खूंटी, तोरपा और अड़की प्रखंड के कुछ इलाकों में किसान ईख की खेती कर अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं। बीरमकेल गांव के गन्ना उत्पादक किसान छोटू महतो और संतोष महतो कहते हैं कि पहले हमलोग सिर्फ धान की खेती करते थे। अच्छी वर्षा होने पर धान की खेती होती थी, अन्यथा दूसरे जगह मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करना पड़ता था लेकिन अब किसान साल में दो बार ईख की खेती कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।
इसी गांव के गन्ने के खेत में सिंचाई कर रही अनीता देवी कहती है कि लागत और मेहनत के हिसाब से ईख की खेती किसानों के लिए काफी लाभदायक है। अनीता ने कहा कि पहले गिने-चुने किसान ही गन्ने की खेती करते थे लेकिन इससे होने वाली आय को देखते हुए अब दर्जनों किसान इसकी खेती कर रहे हैं।
गांव के ही गन्ना उत्पादक किसान राजेश मांझी, निरंजन मांझी, वीरेंद्र अधिकारी, रामानंद मांझी, रितेश मांझी, उदित मांझी और शंकर मांझी ने कहा कि गन्ने की खेती नकदी फसल है। पहले लोगों को तैयार ईख को बेचने के लिए खूंटी, तोरपा, तपकारा, मुरहू जैसी जगहों में जाना पड़ता था लेकिन अब अधिक मात्रा में खेती होने से व्यापारी खेत में आकर पूरी फसल खरीद लेते हैं। किसानों ने बताया कि एक एकड़ खेत में लगभग पांच से नौ सौ क्विंटल गन्ने का उत्पादन होता है। व्यापारी खेत से ही ढाई से तीन सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीद कर लेते हैं।
कृषि तकनीकी प्रबंधन एजेंसी (आत्मा) खूंटी के उप परियोजना निदेशक अमरेश कुमार कहते हैं कि गन्ने की खेती वैसे तो किसी भी मिट्टी में की जा सकती है लेकिन सबसे उपयुक्त दोमट मिट्टी होती है। खूंटी जिले में अधिकांश खेत दोमट मिट्टी वाले हैं। इसलिए यहां गन्ने की खेती की काफी संभावनाएं हैं।
उन्होंने कहा कि गन्ने की खेती में सबसे महत्वपूर्ण बात होती है खेतों से पानी की निकासी। जल जमाव से ईख की खेती खराब हो जाती है। उप परियोजना निदेशक ने कहा कि कृषि विभाग खूंटी जिले में गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
नाम पड़ गया कतारी मोड़
खूंटी-सिमडेगा मुख पथ पर बाबा आम्रेश्चवर धाम से एक किलोमीटर आगे एक मोड़ आता है नाम है कतारी मोड़। गन्ने को नागपुरी भाषा में कतारी कहा जाता है। सड़क के उत्तरी भाग में स्थित बीरमकेल, सुंदारी, दरला आदि गांव में काफी मात्रा गन्ने की खेती होती है। गांव वालों के अनुसार काफी पहले से इस क्षेत्र में गन्ने की होती आ रही है। किसान साइकिल और अन्य साधनों से तैयार कतारी (गन्ना) को बेचने के लिए उसी मोड़ से होकर खूंटी, तोरपा आदि क्षेत्रों में जाते थे। भारी मात्रा में उस मोड़ से गन्ने की ढुलाई के कारण उसका नामकरण ही कतारी मोड़ हो गया।
सरकार से नहीं मिलती सहायता: राजेश मांझी
बीरमकेल गांव के गन्ना उत्पादक किसान राजेश मांझी ने कहा कि वे दस एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में गन्ने की खेती करते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से गन्ना उत्पादक किसानों को किसी प्रकार की मदद नहीं दी जाती। कुछ साल पहले सैकड़ों एकड़ खेत में लगी ईख की फसल में आग लग गई थी। प्रभावित किसान मुआवजे की मांग को लेकर मुरहू प्रखंड और जिला कार्यालय का चक्कर काटते रह गए लेकिन उन्हें कोई सहायता नहीं मिली।