खूँटी। गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी स्व सिंगराज सिंह मानकी का दिरी चापी एवं हड़गड़ी घाट (यादगार महापाषाण) पत्थरगड़ी उनके पुत्र गोवर्धन सिंह मानकी के द्वारा संपन्न किया गया। सुबह से ही लावा भुंजाई, पत्तल आदि सामग्री की व्यवस्था (ये सब उसी दिन व्यवस्था करना, परम्परा) श्मसान पर विधि अनुष्ठान किया गया। कार्यक्रम के बाद सत्कार और खान-पान हुआ। स्वर्गीय सिंगराज सिंह मानकी के पत्थर गढ़ी प्रथा कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के जिला सांसद प्रतिनिधि मनोज कुमार, भीम सिंह मुंडा, भोंज नाग, नौरी पूर्ति, रुकमिला सारु आदि अनेक लोग उपस्थित हुए।
स्वर्गीय मानकी अपने बाल्यकाल से ही देशभक्तित्व का परिचय देते पढ़ाई के उपरांत 17 वर्ष की नाबालिग आयु में ही मोहनदास करमचंद गांधी के साथ हो लिए थे। उन्होंने वर्धा आश्रम में रहकर देश की आजादी के लिए हुंकार भरी। जनजातीय संस्कृति की रक्षा के लिए सरना आदि धर्म संस्कृति को मानने वाले आदिवासियों को इसाई मिशनरियों द्वारा बरगला कर धर्म संस्कृति को नष्ट करने के कुचक्र को गांधीजी को हमेशा याद दिलाते रहते थे। असहयोग आंदोलन सहित कई आंदोलनों के द्वारा अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया। कई बार जेल गए, यातनाएँ सही।
आजादी के बाद वह अपनी पैतृक गांव वापस आए। देश के साथ संस्कृति धर्म प्रेमी आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए हमेशा जागरण करते रहे। वह भगवान बिरसा मुंडा के सुकृत्य के कायल थे। उन्होंने डोंबारी गुरु शहीद श्रद्धांजली मेला का शुभारंभ किया। उन्होंने सिंगी बोंगा, बुरु बोंगा, इकिर बोंगा, पतरा बोंगा आदि पूजन पद्धति को बढ़ाने और वैज्ञानिकता का ध्यान दिलाने में मददगार बने रहे। उन्होंने इसके लिए सुकनबुरु सरना समाज का गठन किया। इनके सुकृत्य पर 1962 ईस्वी में स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने दिल्ली में ताम्र पत्र देकर सम्मानित की थी। इनका देहांत सन 1989 ईस्वी में अपने गांव जोजोहातु में हुआ।