रांची। राज्य सरकार का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधित कोयला क्षेत्र अधिग्रहण विधेयक (कोयला धारक क्षेत्र, अधिग्रहण और विकास संशोधन विधेयक, 2023) देश एवं राज्यहित में नहीं है।
प्रस्तावित विधेयक के प्रावधानों में कई अनुचित बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों से राज्य को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। यह बदलाव जनभावना के अनुरूप नहीं है। बल्कि यह विकास विरोधी बदलाव हैं, जिसका झारखंडवासियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों के हक-अधिकारों का होगा हनन होगा। हमारी सरकार राज्यवासियों और जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा से जुड़े मुद्दों को उठाती रहती है। लोगों के हक-अधिकार को संरक्षित रखना राज्य सरकार की प्राथमिकता है।
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संशोधित विधेयक के संबंध में झारखंड सरकार ने सोमवार को राज्यहित को सर्वोपरि रखते हुए अपना पक्ष रखा है। खान एवं भूतत्व विभाग, झारखंड सरकार ने कई बिंदुओं पर विरोध जताया है, जो निम्न हैं-
– केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) संशोधन विधेयक, 2023 की मूल भावनाओं में कई अनुचित बदलाव, झारखंड प्रदेश को होगा भारी नुकसान
– झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों के हक-अधिकारों का हनन होगा।
-राज्यवासियों और जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा से जुड़े मुद्दों को राज्य सरकार उठाती रहती है।
राज्य सरकार का मानना है कि कोयला मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा प्रस्तावित कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) संशोधन विधेयक, 2023 देश एवं राज्यहित में नही है। संशोधन विधेयक, 2023 में कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) के प्रावधानों में कई अनुचित बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों से राज्य को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। यह बदलाव जनभावना के अनुरूप नहीं है बल्कि यह विकास विरोधी बदलाव हैं, जिसका झारखंड वासियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तथा झारखण्ड के आदिवासी-मूलवासियों के हक-अधिकारों का होगा हनन होगा। हमारी सरकार राज्यवासियों और जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा से जुड़े मुद्दों को उठाती रहती है। लोगों के हक-अधिकार को संरक्षित रखना राज्य सरकार की प्राथमिकता है।
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कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) संशोधन विधेयक, 2023 के संबंध में झारखंड सरकार ने राज्यहित को सर्वोपरि रखते हुए अपना पक्ष रखा है। खान एवं भूतत्व विभाग, झारखंड सरकार ने कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) संशोधन विधेयक, 2023 के संदर्भ में कई बिंदुओं पर विरोध जताया है, जो निन्म हैं।
-खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 की धारा 8 तथा खनिज समनुदान नियमावली, 1960 के नियम-24 (C) के तहत सरकारी कम्पनियों को कोयला खनिज के खनन पट्टा की अवधि निर्धारित है। केन्द्र सरकार के द्वारा खनन पट्टा की अवधि खान का सम्पूर्ण जीवन काल प्रस्तावित है, जो खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम एवं खनिज समनुदान नियमावली के विपरीत है।
– खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 यथा संशोधित 2021 के 05वीं अनुसूची में सरकारी कम्पनियों को कोयला खनिज के खनन पट्टा की स्वीकृति / अवधि विस्तार के मामलों में अतिरिक्त राशि का प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित संशोधन में खनन पट्टा की अवधि खान का सम्पूर्ण जीवन काल होने के कारण सरकारी कम्पनियों को कोयला खनिज के खनन पट्टा की स्वीकृति / अवधि विस्तार के मामलों में राज्य सरकार को अतिरिक्त राशि की प्राप्ति नहीं हो पायेगी।
-कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 के प्रावधानुसार कोयला खनन एवं खनन अनुषंगिक गतिविधियों के लिए ही सरकारी कम्पनियों हेतु भू-अर्जन का प्रावधान है। अन्य आवश्यकताएँ, जैसे की स्थायी आधारभूत संरचना कार्यालय, आवासीय सुविधाओं आदि के लिए LA Act, 1894 के तहत भू-अर्जन का प्रावधान है।
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जबकि प्रस्तावित संशोधन के द्वारा मूल अधिनियम के उद्धेश्य प्रस्तावना, लक्ष्य एवं कारणों को कमजोर करते हुए सरकारी कम्पनियों हेतु अधिग्रहित भूमि को निजी संस्थाओं को अनेकों आधारभूत परियोजनाओं हेतु दिया जाना है।
-भारतीय संविधान के 05वें अनुसूची के तहत आदिवासियों एवं मूलवासियों के भूमि को प्रदत्त सुरक्षा एवं अधिकार से वंचित करते हुए सरकारी कम्पनियों के लिए अधिग्रहित भूमि को निजी संस्थाओं को अनेकों आधारभूत परियोजनाओं हेतु भूमि उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान प्रस्तावित है।
-कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 के तहत सरकारी कम्पनियों के लिए अधिग्रहित भूमि को निजी संस्थाओं को आधारभूत परियोजनाओं हेतु उपलब्ध कराए जाने से आदिवासियों/मूलवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण होगा।.
-मूल अधिनियम की धारा-13 एवं 17 में प्रस्तावित संशोधन से भूमि मालिकों को प्रदत्त अधिकारों का हनन होगा।