09 February। ऐसा कर्मयोगी जिसने नारायण मानकर नर की सेवा कीः कुष्ठ रोगियों के मसीहा बाबा आमटे ने सारा जीवन उस तबके लिए समर्पित कर दिया, जिसे अछूत मानकर आम इंसानों की आबादी से बाहर बसने के लिए मजबूर किया जाता था।
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बेहद संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाले बाबा आमटे ने ऐश-ओ-आराम का रास्ता छोड़ सारा जीवन, कुष्ठ रोगियों की जिंदगी संवारने में लगा दी। देश-विदेश के कई पुरस्कारों से सम्मानित बाबा आमटे का महाराष्ट्र के आनंद वन में 9 फरवरी 2008 को 94 साल की उम्र में निधन हो गया।
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24 दिसंबर 1914 में महाराष्ट्र के वर्धा के निकट एक जागीरदार परिवार में पैदा हुए मुरलीधर देवीदास आमटे को उनके माता-पिता प्यार से बाबा ही पुकारते थे। आगे चलकर उन्होंने दीन-दुखियों की सेवा में जीवन समर्पित कर अपने नाम की सार्थकता सिद्ध की।
शुरुआत में अधिवक्ता के रूप में बेहद सफल रहे बाबा आमटे, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधी से बेहद प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए और कई बार जेल गए। लेकिन उनके जीवन की धारा तब पूरी तरह बदल गयी, जब उन्होंने कुष्ठ रोगियों का जीवन करीब से देखा।
बीमारी और सामाजिक उपेक्षा, कुष्ठ रोगियों को समान रूप से तोड़ रही थी। अंधकारमय भविष्य के बीच कुष्ठ रोगियों का जीवन, किसी कैदखाने से भी बदतर था।
इसे देख बाबा आमटे ने अधिवक्ता का चोगा उतारकर हमेशा के लिए कुष्ठ रोगियों के कल्याण में जुट गए। इस काम में बाबा आमटे की धर्मपत्नी साधना गुलशास्त्री ने बराबर का योगदान दिया जो कुष्ठ रोगियों के बीच ताई के रूप में लोकप्रिय थीं।
बाबा आमटे ने महाराष्ट्र के वरोडा में एक आश्रम की स्थापना की जिसका नाम रखा- आनंद वन। इस आश्रम में कुष्ठ रोगियों की निःशुल्क सेवा शुरू की। आज 180 हेक्टेयर में फैले इस आश्रम में अपनी जरूरत की तमाम चीजों का उत्पादन हो रहा है। आगे चलकर उन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए सोमनाथ, अशोक वन जैसे कई दूसरे सेवा संस्थान खोले। भीख मांगने वाले कुष्ठ रोगियों को बाबा आमटे ने ऐसी नैतिक ताकत दी, जिससे वे समाज में सिर उठाकर जी सकें।
बाबा आमटे ने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार भारत जोड़ो कार्यक्रम शुरू किया। 1971 में पद्मश्री सम्मान पाने वाले बाबा आमटे को मैगसेसे सहित दुनिया भर के कई दूसरे जाने-माने सम्मान मिले।
अन्य अहम घटनाएंः
1760ः मराठा सेनापति दत्ताजी शिंदे का निधन।
1899ः क्रांतिकारी बालकृष्ण चापेकर को यरवदा जेल में फांसी।
1916ः पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री दरबारा सिंह का जन्म।
1935ः हिंदी के शीर्ष आलोचकों में शामिल परमानंद श्रीवास्तव का जन्म।
1970ः हिंदी कवि कुमार विश्वास का जन्म।
1984ः भरतनाट्यम की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना टी. बालासरस्वती का निधन।
2006ः जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री नादिरा का निधन।
2020ः सुप्रसिद्ध उपन्यासकार और नाटककार गिरिराज किशोर का निधन।
2020ः जनसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष पी. परमेश्वरन का निधन।