माजुली (असम): राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि जैसे हर एक व्यक्ति का निश्चित स्वभाव होता है, ठीक वैसे ही हर एक राष्ट्र का अपना चरित्र होता है। राष्ट्र का स्वभाव उसकी संस्कृति से आता है। भारत की संस्कृति सर्वसमावेशी है। सर्व समावेशी संस्कृति सिर्फ भारत में ही है। डॉ. भागवत उत्तर माजुली कमलाबारी सत्र में आयोजित पूर्वोत्तर संत मणिकांचन सम्मेलन 2023 को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज के समय में विश्व को शांति और सहअस्तित्व का संदेश और इसपर केंद्रित जीवन-पद्धति देने के लिए भारत को खड़ा रहना पड़ेगा। इस कार्य के लिए संतों को ही समाज में आगे आना होगा। उन्होंने स्मरण दिलाया कि हम सबके पूर्वज एक हैं, सबकी मान्यताएं एक हैं। हम सबको अपनी विविधताओं का पालन करते हुए हमारी एकता को आगे ले जाना है। एकता समरुपता नहीं है अपितु समभाव है। सरसंघचालक ने सेवा के जरिए शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार आदि के द्वारा समाज को स्वावलंबी बनाने पर बल दिया।
संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने कहा कि संस्कारों के साथ परिवारों में राष्ट्रीय सजगता की अति आवश्यकता है। हमारी नई पीढ़ी तक इस भाव और हमारी श्रेष्ठ आध्यात्मिक मूल्यों को पहुंचाने का काम सभी धर्माचार्यों और उनके मठ-मंदिरों को करना चाहिए। जिस तरह महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव ने अपने श्रेष्ठ जीवन व्यवहार से अपने समाज का सुधार किया, ठीक उसी तरह हमें भी संगठित शक्ति के द्वारा वर्तमान कुरीतियों को समाप्त करना है।
संत मणिकांचन सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर असम प्रांत के तत्वावधान में किया गया। इस एकदिवसीय सम्मेलन में पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों के 48 सत्रों के सत्राधिकार तथा 37 विभिन्न धार्मिक संस्थानों से कुल 104 धर्माचार्यों ने भाग लिया।
सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य सभी संप्रदायों के बीच संपर्क, समन्वय, सद्भाव और समरसता को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करना है। इस कार्य के लिए परस्पर सहयोग का आह्वान किया गया।
इस सम्मेलन में पूर्वोत्तर के सभी संप्रदायों की समस्याओं पर चिंतन-मंथन हुआ। इस एक दिवसीय सम्मेलन में पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख संतों में त्रिपुरा के शांतिकाली आश्रम से चितरंजन जी महाराज, उत्तर कमलाबारी सत्र के जनार्दनदेव गोस्वामी, आऊनी आटी सत्र, दक्षिणपात सत्र, गड़मूर सत्र, बरपेटा के सुंदरिया सत्र, नामसाई बोधि बिहार के श्री भंते, परशुराम कुंड के बाबा श्रीमंत शंकरदेव संघ, जयंतिया हिल्स के डलोई पूरामोन किंजिन, झेलियांग रांग हररका, बोड़ो बलि बाथो समाज, राजश्री भाग्यचन्द्र फाउंडेशन मणिपुर, लखीमन संघ, कार्गु गामगी समाज और असम सत्र महासभा आदि के संत विशेष रूप से उपस्थित थे।