निर्जला एकादशी का व्रत सभी 24 एकादशियों में सबसे अधिक पुण्यदायक और कठिन माना जाता है। अन्य एकादशी व्रतों में जहां जल, फल या फलाहार की अनुमति होती है, वहीं निर्जला एकादशी में पूर्ण उपवास (निर्जल) करना होता है। इस व्रत को करने से समस्त एकादशियों का पुण्यफल प्राप्त होता है।
व्रत का नाम: निर्जला एकादशी
अन्य नाम: भीम एकादशी, भीमसेनी एकादशी
तिथि: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी (मई-जून के महीने में)
प्रमुख देवी/देवता: भगवान विष्णु
विशेषता: इस दिन व्रती बिना जल और अन्न के उपवास करता है
मान्यता: जो व्यक्ति वर्ष भर की सभी एकादशियाँ नहीं कर पाता, वह केवल निर्जला एकादशी का व्रत करके सबका पुण्य पा सकता है।
पौराणिक कथा
महाभारत के अनुसार, पांडवों में भीम बलवान और भूख के कारण उपवास नहीं कर पाते थे। उन्होंने श्रीकृष्ण से उपाय पूछा। श्रीकृष्ण ने कहा कि यदि वह एक ही दिन निर्जला एकादशी का व्रत पूरे नियम से कर लें, तो उन्हें साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाएगा। भीम ने इस व्रत को किया, वह बिना जल के पूरे दिन उपवास में रहे और अंत में श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त की। तभी से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
व्रत की विधि
1. व्रत की पूर्व रात्रि (दशमी)
सात्विक भोजन करें।
मन, वाणी और कर्म से पवित्र रहें।
जल्दी सो जाएं और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
2. व्रत का दिन (एकादशी)
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
तुलसी पत्र, पीले पुष्प, चंदन, धूप आदि से पूजन करें।
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
जल, फल, अन्न कुछ भी ग्रहण न करें।
व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
दिन भर भगवत-चिंतन, गीता पाठ, भजन-कीर्तन करें।
रात को जागरण (भजन-संकीर्तन) करें।
3. व्रत का पारण (द्वादशी तिथि)
सूर्योदय के बाद स्नान कर के भगवान विष्णु को भोग लगाएं।
ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।
तुलसी के पत्ते और गंगाजल से व्रत का पारण करें।
जल और फल ग्रहण करके व्रत पूर्ण करें।
व्रत के लाभ
समस्त एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
मन की शुद्धि और आत्मिक बल में वृद्धि होती है।
पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है।
मृत्यु के उपरांत विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
रोग, भय और दुर्भाग्य दूर होते हैं।
व्रत के नियम
यह व्रत अत्यंत कठिन है, अतः बुज़ुर्ग, गर्भवती स्त्री या बीमार व्यक्ति को सलाह लेकर व्रत करना चाहिए।
व्रत के दौरान क्रोध, झूठ, चोरी, निंदा, नींद आदि से बचें।
मन, वाणी और शरीर को संयमित रखें।
विशेष बातें
इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
पितरों के मोक्ष के लिए भी यह व्रत किया जाता है।
दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायक होता है, जैसे:
जल से भरे घड़े का दान
छाता, वस्त्र, फल, अन्न, गंगाजल का दान
निर्जला एकादशी का व्रत भक्ति, तपस्या और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है। यह व्रत केवल भूखे रहने का अभ्यास नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और ईश्वर में पूर्ण समर्पण का एक अवसर है।