New Delhi: पाकिस्तान में एक बार फिर तख्तापलट की आहट सुनाई देने लगी है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को हटाकर देश की कमान सेना प्रमुख असीम मुनीर के हाथों में सौंपने की योजना है. तख्तापलट की पटकथा सेना के इशारे पर लिखी जा चुकी है.
असीम मुनीर के फील्ड मार्शल बनाये जाने के बाद सत्ता पर उनकी पकड़ लगातार मजबूत होती गयी. मुनीर अब केवल सेना के नहीं बल्कि पाकिस्तान की पूरी राजनीतिक संरचना के मालिक बन गये हैं. मुनीर की अमेरिका चीन और सऊदी अरब की कूटनीतिक यात्राएं बता रही हैं कि वह अब पाकिस्तान के असली शासक हैं. बस मुहर लगनी बाकी है.
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बताया जा रहा है कि मुनीर राष्ट्रपति बनेंगे. शाहबाज शरीफ हटाए जाएंगे और उनकी जगह बिलावल प्रधानमंत्री बनेंगे। बिलावल की कीमत पर जरदारी अपनी जगह छोड़ देंगे. इस संभावित बदलाव से पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज और शरीफ परिवार में हड़कंप मच गया है. नवाज शरीफ और मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को डर है कि राष्ट्रपति प्रणाली आने पर न सिर्फ सरकार जाएगी बल्कि उनकी सियासी जमीन भी खत्म हो जाएगी.
यही कारण है कि शरीफ परिवार पाकिस्तानी सेना के अन्य धड़ों से संपर्क में हैं. खबर है कि जरदारी की पार्टी के भीतर भी बिलावल की भूमिका को लेकर मतभेद हैं. फिर भी सेना और PPP के गठजोड़ के संकेत साफ हैं कि बिलावल को आगे लाने की स्क्रिप्ट तैयार है. यह पूरी घटनाक्रम जनरल जिया-उल-हक के 1977 के तख्तापलट की बरसी के आसपास हो रहा है जिससे इसे तानाशाही की वापसी की तरह देखा जा रहा है. अटकलें यह भी है कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और पाकिस्तान के वर्तमान सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के बीच कई मुद्दों पर तनाव है। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नागरिक सरकार और सैन्य नेतृत्व के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद मुनीर सीधे तौर पर सरकारी फैसलों में दखल देने लगे हैं। सेना की ऐसी दखलंदाजियां पहले से जारी थीं, लेकिन हाल के दिनों में काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। इतना ही नहीं, जनरल मुनीर अब चाहते हैं कि पाकिस्तान की रक्षा और विदेश नीति को सेना चलाए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ डिनर के बाद जनरल मुनीर के हौसले और ज्यादा बढ़ गए हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नियुक्तियों और शासन की सामान्य दिशा पर असहमति के बाद जरदारी और मुनीर के बीच तनाव के पहले संकेत सामने आए। मार्च 2024 में दूसरी बार पदभार संभालने वाले जरदारी कथित तौर पर अपने संवैधानिक अधिकार का ऐसे तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे सेना असहज महसूस कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा सेना से जुड़े कुछ फैसलों- जैसे वरिष्ठ नियुक्तियों, पोस्टिंग और विदेश नीति पर मुहर लगाने में अनिच्छा ने सेना को नाराज कर दिया है।
इस्लामाबाद और रावलपिंडी के सत्ता गलियारों के सूत्रों ने पुष्टि की है कि हाल के महीनों में सेना के साथ राष्ट्रपति जरदारी का टकराव बढ़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है बिलावल भुट्टो जरदारी द्वारा की गई टिप्पणी है, जो आसिफ अली जरदारी के बेटे और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख हैं। बिलावल ने हाल ही में नामित आतंकवादियों हाफिज सईद और मसूद अजहर को भारत प्रत्यर्पित करने का प्रस्ताव रखा, जिससे देश में जिहादी समूह नाराज हो गए हैं। इन जिहादी समूहों को पाकिस्तानी सेना का संरक्षण प्राप्त है।
पाकिस्तान ने तीन प्रत्यक्ष सैन्य तख्तापलट देखे हैं। 1958, 1977 और 1999 में- और कई अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के उदाहरण भी देखे हैं, जहाँ जनरलों ने पर्दे के पीछे से नागरिक सरकारों को प्रभावित, बर्खास्त या हेरफेर किया। पाकिस्तान पर अपने अस्तित्व के लगभग आधे समय तक शासन किया है, या तो सीधे या सैन्य समर्थित राजनीतिक गठबंधनों के माध्यम से। आखिरी सैन्य तख्तापलट 1999 में हुआ था जब जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ कर दिया था। उससे पहले, जनरल जिया-उल-हक ने 1977 में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो आसिफ अली जरदारी के ससुर को हटा कर मार्शल लॉ लागू कर दिया था।
पाकिस्तान की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है। मुल्क की फौज और सियासी गलियारों में चर्चा है कि फील्ड मार्शल असीम मुनीर एक बड़ा खेल खेलने की तैयारी में हैं। कयासों का बाजार गर्म है कि फील्ड मार्शल असीम मुनीर, राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को हटाकर सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले सकते हैं। तो क्या पाकिस्तान एक और फौजी तख्तापलट की कगार पर है? देश के माहौल में तनाव और सियासी बयानबाजी ने इन चर्चाओं को और तेज कर दिया है।