RANCHI : रामायण मात्र धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है, बल्कि भारतीय सभ्यता और इतिहास की अमूल्य धरोहर : अभिराज राजेन्द्र
रांची : पद्मश्री प्रो. (डा.) अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने शनिवार को कहा कि रामायण मात्र धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है, अपितु यह भारतीय सभ्यता और इतिहास की अमूल्य धरोहर है। इसमें वर्णित घटनाएँ, स्थलों का विवरण और जीवन मूल्यों का चित्रण प्राचीन भारतीय समाज की सांस्कृतिक और राजनीतिक संरचना का परिचायक है। प्रो. मिश्र डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, राँची में ‘रामकथा की वैश्विकता’ पर आयोजित व्याख्यान के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में विद्यार्थियों को सम्बोधित कर रहे थे।
प्रो. मिश्र ने कहा कि रामकथा की व्याप्ति अत्यंत विस्तृत और बहुआयामी है। यह केवल भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि सम्पूर्ण दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में फैल गई। भारत में संस्कृत में वाल्मीकि रामायण से लेकर अवधी में तुलसीदास कृत रामचरितमानस तक अनेक भाषाओं और लोककथाओं में रामकथा की विभिन्न छवियाँ देखने को मिलती हैं। थाईलैंड का “रामकियेन”, इंडोनेशिया का “काकाविन रामायण”, कंबोडिया का “रीमकेर” और नेपाल का “भानुभक्त रामायण” इसकी अन्तर्राष्ट्रीय लोकप्रियता के प्रमाण हैं।
नाट्य, नृत्य, चित्रकला, त्योहारों और लोकजीवन में रामकथा का गहरा प्रभाव है। उन्होंने कहा कि भगवान् राम भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष हैं, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। उनका चरित्र सत्य, धर्म, त्याग, करुणा और न्याय का प्रतीक है। राम ने अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना धैर्य और विवेक से किया। उनका आदर्श आज भी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने समृद्ध भारतीय ज्ञान परम्परा के विविध पक्षों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमें भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव भाव रखना होगा और वेदों में निहित ज्ञान के तत्त्वों को प्रकाश में लाना होगा।
विशिष्ट अतिथि के रूप में राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, राँची के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा. शैलेश कुमार मिश्र ने कहा कि रामकथा अशेष विश्व में प्रसृत है और वर्तमान परिदृश्य में अत्यंत प्रासंगिक भी। उन्होंने कहा कि प्रभुता पाकर मदमत्त हो जाना लोक की प्रकृति है, लेकिन प्रभुता पाकर भी जो मद मात्सर्य से दूर रहे वही राम है। उन्होंने कहा कि राम नाम है त्यागवृत्ति का। जब राजा त्यागवृत्ति वाला होता है तभी रामराज्य आता है। राम पीढ़ियों से हमारी धमनियों में बहनेवाला संस्कार है। राम हमारे प्रेरणापुञ्ज हैं जो सर्वत्र न्याय की रक्षा में सन्नद्ध खड़े दीखते हैं। उन्होंने कहा कि राम होने का अर्थ विडंबनाओं और वैपरीत्य में आलोचनाओं के समक्ष खड़े होना है । राम होने का अर्थ अपार निराशा में भी लोकानुरंजन के लिए आत्मप्रज्वलित शक्ति उत्पन्न कर उद्देश्यों की ओर बढ़ते जाना है ।
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने कहा कि राम का अर्थ है त्याग, राम का अर्थ है लोकानुराग, राम का अर्थ है सत्य, राम का अर्थ है शौर्य, राम का अर्थ है करुणा। राम वाणी के संयम के प्रतीक हैं, जो कभी दोहरी बात नहीं करते। डा. द्विवेदी ने कहा कि हमारे भीतर बसे ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, लोभ, मोह और तमाम भ्रष्टाचार के रावणों का त्याग, धैर्य, क्षमा, सदाचार, शौर्य की असिधार से संहार करने वाले संस्कार का नाम है राम। राम होने का अर्थ संस्कृति में प्राणवत्ता का सञ्चार करना है । रामनाम और रामकाज से विमुख होना संस्कार और संस्कृति से मुँह मोड़ना है।
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