पश्चिम बंगाल। बंगाल में सत्ता की स्थिति भी उत्तराखंड जैसी ही दिख रही है। यहां सीएम ममता बनर्जी अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं।
ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के दिन से छह महीने के अंदर यानी 4 नवंबर तक विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है और यह संवैधानिक बाध्यता है।
उन्होंने अपने लिए एक सीट (भवानीपुर) खाली भी करा ली है लेकिन वह विधानसभा की सदस्य तभी बन पाएंगी जब तय अवधि के अंदर चुनाव हो सके।
कोरोना की वजह से केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने सभी चुनाव स्थगित किए हुए हैं।
चुनाव प्रक्रिया कब से शुरू होगी, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।
ऐसे में अगर नवंबर तक भवानीपुर उपचुनाव के बारे में चुनाव आयोग फैसला नहीं लेता है तो ममता की गद्दी के लिए भी खतरा हो सकता है।
बंगाल में जब आयोग चुनाव करा रहा था तब कई राजनीतिक दलों ने आयोग पर लोगों की जान से खेलने के आरोप लगाए थे।
ऐसे में अब जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि चुनाव कराने से किसी की जान को खतरा नहीं है तो चुनाव होने की सूरत बनती नहीं दिख रही है।
ममता ने हालात को समझते हुए, विधान परिषद वाला रास्ता निकालने की कोशिश की थी।
उन्होंने विधानसभा के जरिए प्रस्ताव पास कराया कि राज्य में विधान परिषद का गठन हो लेकिन बगैर लोकसभा की मंजूरी के यह संभव नहीं है।
केंद्र सरकार के साथ उनके रिश्ते जगजाहिर हैं। ऐसे में विधान परिषद वाला रास्ता भी मुमकिन नहीं है।