भुवनेश्वर: बुखार सिर्फ इंसान को ही नहीं बल्कि भगवान को भी आ जाता है। जानकर आश्चर्य होगा लेकिन यह सच है। पूरी दुनिया को रोगों से मुक्ति दिलाते वाले भगवान जगन्नाथ खुद हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन बीमार पड़ जाते हैं। भगवान का स्वास्थ्य खराब होने के कारण मंदिर में भक्तों का प्रवेश बंद कर दिया जाता है। केवल पुजारी और वैद्यजी को ही इलाज हेतु सुबह-शाम भगवान तक जाने की छूट होती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ओडिशा स्थित जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ की ‘स्नान यात्रा’ का महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलराम एवं सुभद्राजी के काष्ठ विग्रहों को स्नान हेतु मंदिर से बाहर लाया जाता है। इस यात्रा को ‘पहांडी’ कहते हैं।
श्रीविग्रहों को मंदिर से बाहर लाने के बाद उन्हें सूती परिधान धारण करा कर पुष्प के आसन पर विराजमान किया जाता है। इसके भगवान जगन्नाथ को 108 स्वर्ण पात्रों द्वारा कुएं के चंदन मिश्रित शीतल जल से स्नान कराया जाता है।
ज्येष्ठ माह की भीषण गर्मी में शीतल जल से स्नान के कारण भगवान जगन्नाथ को बुखार आ जाता है और वे अस्वस्थ हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान जगन्नाथ के अस्वस्थ होने को इसे उनकी ‘ज्वरलीला’ भी कहा जाता है। ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में शीतल जल से स्नान के कारण लू लग जाने से भगवान जगन्नाथ को बुखार आ जाता है।
काढ़ा और परवल का जूस
बीमारी में जगन्नाथ जी को मौसमी फल, परवल का जूस और काढ़ा पिलाया जाता है। काढ़ा और जूस उन पर चढ़ाने के बाद भक्तों के बीच बांट दिया जाता है। कहते हैं इलायची, लौंग, चंदन, काली मिर्च, जायफल और तुलसी से बना काढ़ा पीने से शारीरिक और मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।
लगातार 15 दिनों तक प्राकृतिक दवाएं देने से महाप्रभु 15वें दिन यानी अमावस्या के दिन स्वास्थ हो जाते हैं। सेहत में सुधार के बाद धूमधाम से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में भगवान जगन्नाथ के एक परम भक्त थे, जिनका नाम माधवदास। जब माधवदास छोटे थे तभी उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। उनका बचपन काफी परेशानियों में बीता लेकिन उनकी भक्ति में भी कोई कमी नहीं आई।
युवा अवस्था में उनका विवाह हुआ लेकिन कुछ ही दिनों में उनकी पत्नी का निधन हो गया। बावजूद वे निरंतर भगवान जगन्नाथ की सेवा में लगे रहे। वे भगवान की पूजा पूरी श्रद्धा से कार्य करते रहते थे।
बताया जाता है कि एकबार माधवदास काफी बीमार हो गए। मंदिर के अन्य सेवकों ने उनकी मदद करनी चाही लेकिन उन्होंने मदद करने से मना कर दिया। वे लगातार भगवान जगन्नाथ की पूजा करते रहे। बीमार होने के कारण वे बहुत कमजोर हो गए, लेकिन एक दिन वे पूजा करते-करते बेहोश हो गए।
महाप्रभु भगवान जगन्नाथ को अपने भक्त की ऐसी हालत देखी नहीं गई। वे स्वंय एक सेवक के रूप में प्रकट हुए और माधवदास की सेवा करने लगे। भगवान द्वारा सेवा करने से माधवदास जल्द ही स्वस्थ हो गए और उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि ये स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं।
भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए। माधवदास भगवान के चरणों में गिर पड़े और महाप्रभु से माफी मांगी। माधवदास बोले कि भक्त प्रभु की सेवा करते हैं, प्रभु भक्त की नहीं। यह सुनते ही भगवान ने माधवदास को गले लगा लिया। माधवदास ने भगवान से पूछा कि प्रभु आप तो सर्वशक्तिमान हैं, आप तो बिना सेवा किए मुझे ठीक कर सकते थे। फिर आपने मेरी सेवा क्यों की।
महाप्रभु ने कहा कि, माधवदास जो प्रारब्ध है उसे तो भोगना ही पड़ेगा।। अगर उसको इस जन्म में नहीं काटोगे तो उसे भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा। इसलिए मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े।
इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की, लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता। अब तुम्हारे प्रारब्ध में 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग अब मैं ले लेता हूं। 15 दिन का रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया। तब से भगवान जगन्नाथ ये 15 दिन बीमार रहते हैं।