रांची: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने शुक्रवार को रांची में एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि ग्रामोत्थान से ही राष्ट्रोत्थान संभव है। जीवन के हर क्षेत्र में क्या परिवर्तन होने चाहिए, यह निरंतर सोचते रहना चाहिए। उनका मानना है कि हर आंदोलन से कुछ-न-कुछ सकारात्मक परिवर्तन जरूर होता है और अशोक भगत ऐसे ही एक आंदोलन के प्रतिफल हैं।
दत्तात्रेय ने कहा कि आज लेखन केवल लेखक बनने के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि उस संकल्प को शब्दों में ढालने के लिए होना चाहिए, जो समाज को दिशा दे सके। जो संस्कृति को बचाते हुए सभ्यता को आगे बढ़ा सके। कर्तव्य, संकल्प और सेवा-इन्हीं तीन मूलधाराओं में बहता है वह विचार जो अशोक भगत जैसे लोगों के जीवन में मूर्त रूप ले चुका है।
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उन्होंने कहा कि भारत का इतिहास एक जीवंत परंपरा है जो शास्त्र, धर्म और प्रकृति तीनों के संतुलन से पनपी है। हमारे ऋषियों-मुनियों ने जिस सभ्यता की नींव रखी, उसमें ‘वन लाइफ-वन मिशन’ का विचार जीवित था-एक ऐसा जीवन जो केवल स्वयं के लिए नहीं, समष्टि के कल्याण के लिए जिया जाए।
आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने बतौर मुख्य अतिथि विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत की नई पुस्तक ‘परंपरा और प्रयोग’ का लोकार्पण किया। राजधानी के बरियातु रोड स्थित ग्रामायतन आरोग्य भवन-1 शुक्रवार को सामाजिक चेतना के संगम लोकार्पण समारोह का साक्षी बना।
दत्तात्रेय होसबाले ने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि यह कृति केवल एक पुस्तक नहीं बल्कि एक आंदोलन है, जो समाज को अपनी जड़ों से जोड़े रखने के साथ-साथ विकास की नई राहों की ओर प्रेरित करती है। पुस्तक में झारखंड के पलायन से लेकर, जल संरक्षण, कृषि, स्वच्छता, स्वावलंबन समेत कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान बताया गया।
होसबाले ने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन केवल विदेशी शासन से मुक्ति की लड़ाई नहीं था बल्कि वह व्यवस्था परिवर्तन की आकांक्षा थी। ग्रामोत्थान से राष्ट्रोत्थान का सपना गांधी से लेकर आज तक की चेतना में जीवित है। चुनाव प्रणाली हो, न्यायपालिका या प्रचार माध्यम-हर मोर्चे पर बदलाव की पुकार आज भी वैसी ही गूंजती है। भगवद् गीता के शाश्वत संदेश, दया-करुणा के आदर्श और संतुलित कुटुम्ब व्यवस्था की संकल्पना-इन सबके बीच आज फिर एक महत्वपूर्ण समय खड़ा है। यह समय है परंपरा के आलिंगन और प्रयोग की हिम्मत के बीच संतुलन बनाने का। यह समय है आधुनिकता का विरोध नहीं, उसे संस्कृति के साथ समन्वय में ढालने का।
जनजातीय जीवन में रचा-बसा है भारत का असली चरित्र सरकार्यवाह ने कहा कि विद्यार्थी परिषद के कई कार्यकर्ता आज समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी मिसाल कायम कर रहे हैं और अशोक भगत उनमें से एक हैं। उन्होंने कहा कि समाज की सेवा करते-करते अशोक का देशान्तरण, नामांतरण और रूपांतरण हुआ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि विकास भारती का कार्य केवल समाज सेवा तक सीमित नहीं, बल्कि यह सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण का भी कार्य है। इनका जीवन ही क्रियान्वयन है। उन्होंने विद्यार्थी परिषद में अपने समय को याद करते हुए कहा कि जब अशोक भगत जैसे कार्यकर्ता भाषण करते थे तो लगता था कि ये लोग कितने प्रभावशील हैं।
विकास की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत उन्होंने चार प्रमुख विचारधाराओं का उल्लेख किया-गांधी विचारधारा, वामपंथी विचारधारा, विवेकानंद की विचारधारा और विकास भारती की कार्यशैली। उन्होंने कहा कि गांधीवाद ने समाजोपयोगी कार्य किए, वामपंथी विचारधारा ने विद्रोह के आधार पर कार्य किया, स्वामी विवेकानंद ने युवा चेतना को जागृत किया और विकास भारती ने परंपरा के साथ प्रयोग करते हुए समाज के लिए ठोस कार्य किया। होसबाले ने कहा कि जल, जंगल और जमीन के साथ संतुलन बनाते हुए विकास की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विकास भारती द्वारा प्रस्तुत अनुभव कोई शोध-पुस्तक का निष्कर्ष नहीं, बल्कि व्यवहारिक अनुभव की उपज है।
आत्मचिंतन और समाज के प्रति संकल्प है पुस्तक लेखन : पद्मश्री अशोक भगतपुस्तक के लेखक पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि पुस्तकों का कोई विकल्प नहीं है। ज्ञान परंपरा, विचार और अनुभवों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए लेखन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में तकनीक तेजी से बढ़ी है, लेकिन पुस्तकें ही ऐसी स्थायी धरोहर हैं, जो व्यक्ति को आत्मचिंतन, विवेक और गहराई से सोचने की दिशा देती हैं। पुस्तक लेखन केवल शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि जीवन के मूल्यों, संवेदनाओं और समाज के प्रति उत्तरदायित्व की अभिव्यक्ति है। विचारों को जीवित रखने और संवाद को सतत बनाए रखने में पुस्तकों की भूमिका अतुलनीय है।
सेवा, संकल्प और संवेदना का जीवंत प्रतीक हैं अशोक भगत विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के अध्यक्ष प्रो. डॉ. प्रदीप जोशी ने कहा कि इस पुस्तक में अशोक भगत का एक-एक लेख समाज के लिए उपयोगी है। इनका सम्पूर्ण जीवन आदिवासी बन्धुओं के लिए समर्पित रहा, जिस समय इन्होंने इनके बीच काम शुरू किया, वह असान नहीं था। इनका वस्त्र देखकर मैं भावविह्व हो गया, उस समय वह जूट/टाट का वस्त्र धारण किए हुए थे। इन्होंने वनवासी क्षेत्र में कार्य करते समय संकल्प लिया था कि जब तक यहां के मूलवासियों के शरीर पर वस्त्र नहीं होगा, तब तक धारण नहीं करूंगा।
इस मौके पर आदिवासी जनजातीय की छात्राओं ने स्वागत गीत व नृत्य प्रस्तुत किया। पुस्तक के लेखक पद्मश्री अशोक भगत ने आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का स्वागत किया।
ये उपस्थित थे
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जून मुंडा, भाजपा के बिहार एवं झारखंड के संगठन मंत्री नागेंद्र त्रिपाठी, प्रांत प्रचारक गोपाल शर्मा, आरएसएस के क्षेत्र संघचालक देवव्रत पाहन, प्रदेश संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह समेत अन्य प्रमुख लोग उपस्थित थे।