राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: समर्पण, संगठन व सेवा के 100 वर्ष
- गोपाल शर्मा, प्रांत प्रचारक, झारखंड
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष { विजयदशमी १९२५ से विजयादशमी २०२५ } पूर्ण कर रहा है। स्थापना के बाद से लगातार संघ के विस्तार, इसकी शक्ति एवं बढ़ते प्रभाव को देखकर लोगों में संघ कार्य को जानने तथा उसे समझने की उत्सुकता बढ़ रही है।
यदि संघ को समझना है तो उसके संस्थापक आद्य सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार को समझना आवश्यक है। डॉ. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त तथा अंग्रेजों की गुलामी को लेकर उनके मन में तीव्र चिढ़ थी, आक्रोश था जो उनकी बाल्यावस्था में अनेक रूप में प्रकट हुआ था। डॉ हेडगेवार के मन में यह विचार भी था कि केवल स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रयास करना बीमारी के लक्षण का इलाज करने के समान है । इसलिए पहले इसे विचार करना होगा कि इतने विशाल, समृद्ध और संपन्न भारतीय समाज को गुलाम बनने की नौबत क्यों आई । डॉ हेडगेवार ने राष्ट्र की अवनति के तीन प्रमुख कारण बताएं | पहला- आत्म विस्मृत समाज। अपने देश की श्रेष्ठता, गौरवशाली अतीत, राष्ट्रीय एकात्मता व सामाजिक समरसता के भाव को लोग भूल गये । दूसरा- आत्म केन्द्रित व्यक्ति | समाज हित दुर्लक्षित हो गया | स्वार्थपरता की पराकाष्ठा हो गई | लोग केवल अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में ही विचार करने लग गये । एकांकी भाव प्रभावी हो गया। देश की परिस्थिति का चिन्तन विलुप्त हो गया । तीसरा – सामूहिक अनुशासन एवं आत्म हीनता का भाव – भाषा, शिक्षा, जीवन मूल्य इतिहास के प्रति स्वाभिमान शून्यता बढ़ गया । परिणामतः समाज विघटित हो गया। अपना देश परतंत्र एवं खंडित हो गया ।
डॉ. हेडगेवार ने मूल रोगों का इलाज, समाज की आत्म जागृति, स्वाभिमान, राष्ट्र की एकता, परस्पर आपसी पारिवारिक संबंध, सामाजिक एवं राष्ट्रीय अनुशासन और राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के मूलभूत उद्देश्यों को लेकर हिन्दू समाज में नहीं अपितु सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठन एवं उसके लिए राष्ट्र भक्ति एवं गुणयुक्त स्वयंसेवक सर्वदा तैयार हों, इसी को ध्यान में रखकर विजयादशमी १९२५ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। सम्पूर्ण भारत की पहचान जिससे है, उस अध्यात्म आधारित एकात्म और सर्वांगीण जीवन दृष्टि को दुनिया हिंदुत्व अथवा हिन्दू जीवन दृष्टि के नाते जानती है। उस हिंदुत्व को जगाकर सम्पूर्ण समाज को एक सूत्र में जोड़कर निर्दोष और गुणवान हिन्दू समाज के संगठन का यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से शुरु हुआ | स्वामी विवेकानंद दो वर्ष भारत भ्रमण करने के पश्चात १९९३ में अमेरिका गये | 4 वर्ष अमेरिका एवं यूरोप का भ्रमण करके वापस आये | स्वामी विवेकानंद ने सार रूप में भारतीयों को तीन बातें कही थी | एक – भारत के समाज को संगठित करना, दूसरा – हमें व्यक्ति निर्माण का कोई तंत्र विकसित करना चाहिए और तीसरा – आने वाले कुछ वर्षों के लिए सारे भारतीय एक ही देवता की आराधना – उपासना करे , वह यानि भारत माता | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य प्रारंभ होने से स्वामी जी के इन तीनो बातों का साकार रूप मिलता है |
डॉ हेडगेवार जी ने राष्ट्रीय चरित्र निर्माण और सामूहिक गुणों की उपासना , साधना, उन राष्ट्रीय गुणों का सामूहिक अभ्यास करने हेतु तथा अपने ध्येय का नित्य स्मरण करने के लिए दैनंदिन एकत्र होने के लिए शाखा नामक कार्यपद्धति संघ में विकसित किये | दैनंदिन एक घंटा चलने वाली शाखा में यह भाव जगाया जाता है कि भारत का संपूर्ण समाज एक है, समान है और सभी अपने हैं | साथ ही उद्दयम, साहस, धैर्य, शक्ति, बुद्धि और पराक्रम जैसे गुण विकसित करने के लिए विविध कार्यक्रम शाखा पर होते हैं | संघ में विशेष कार्यपद्धति खड़ी की गई | इकठ्ठा आना सद्गुणों की सामूहिक उपासना करना | प्रतिदिन मन में इस संकल्प को जागृत करना कि हम मातृभूमि के लिए काम कर रहे हैं, परम वैभव के लिए काम कर रहे हैं | यह जो आधार है मिलना-जुलना, एक दूसरे को सहयोग यही संघ का मूल है |
जब संघ कार्य प्रारंभ हुआ तो संघ के पास कुछ भी नहीं था | विचार की मान्यता नहीं थी , प्रचार के साधन नहीं थे, समाज में उपेक्षा और विरोध ही था , कार्यकर्त्ता भी नहीं थे |डॉ हेडगेवार को लोग तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे | इसी में से संघ का कार्य आगे बढ़ने लगा | संघ स्थापना के पश्चात प्रार्थना, प्रतिज्ञा, दैनिक शाखा, भगवा ध्वज को गुरु मानना ,श्री गुरु दक्षिणा कार्यक्रम ,कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण हेतु संघ शिक्षा वर्ग ,प्रचारक पद्धति,गीत, सुभाषित,अमृतवचन आदि विशेष कार्यपद्धति खड़ी की गई |
संघ की इस यात्रा को देखते हैं तो १९२५ से १९४० तक हिन्दू समाज का संगठन हो सकता है यह साबित हुआ | १९४८ तक संघ एक शक्ति के रूप में समाज जीवन में उभर रहा था | देश में स्वतंत्रता पूर्व एवं पश्चात जैसा वातावरण था उसमें हिन्दुओं में विश्वाश निर्माण करने वाला कोई संगठन था तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ था |१९७५ तक संघ कार्य समाज में स्थापित हो गया, देशभर में कार्य विस्तार सभी प्रान्तों में, सभी जिलों में पहुँच गया | संगठन की कार्यपद्धति विकसित होकर निश्चित हो गया कि यह सही है | संघ कार्य को एक वैचारिक अधिष्ठान प्राप्त हुआ कि आखिर संघ क्यों है। १९७५ के बाद समाज परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारंभ करने का कालखंड है । रामजन्मभूमि आन्दोलन जिसमे समाज की शक्ति खड़ी हुई , उडुपी में संत सम्मेलन जिसमे सामाजिक समरसता का प्रमुख विषय था कि समाज की समस्याओं का कारण भेदभाव है, उसे समाप्त करने के लिए सभी मतों, सम्प्रदायों, पंथों के संतों नें एक स्वर से आह्वान किया ।
१९७५ के बाद कार्य का विस्तार दोगुना हुआ । कई तरह के सामाजिक प्रश्नों के उत्तर खोजने की प्रक्रिया आरंभ हुई । १९९० में डॉ हेडगेवार जन्मशताब्दी पर संघ के स्वयंसेवकों की समाज के प्रति जो भावनाएं हैं उनका प्रकटीकरण होना चाहिए और वह सेवा कार्य के रूप में हो और इसी में से सेवा, संपर्क एवं प्रचार विभाग खड़े हुए । २००६- ०७ में पूजनीय श्री गुरूजी जन्मशताब्दी वर्ष में संघ समाज के विभिन्न वर्गों में गया । जाति भेद समाप्त होना चाहिए इस हेतु समाज का नेतृत्व करने वाले जो लोग हैं उनको सारे परिवर्तन की प्रक्रिया से जोड़ने के लिए संघ नें प्रयास किया । २००५ के बाद संघ कार्य विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से समाज के नए वर्गों तक पहुँच रहे हैं।
संघ के 100 वर्षों की यात्रा को देखते हैं तो समाजहित, राष्ट्रहित के लिए अनेक कार्य किये गए । देश विभाजन के समय संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका जैसे कश्मीर समस्या समाधान में द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य श्री गुरूजी का योगदान , चीन आक्रमण के समय संघ द्वारा कार्य, कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक, केरल में निलक्कल चर्च के खिलाफ आन्दोलन, श्री राम सेतु आन्दोलन, तिरुपति आन्दोलन, अमरनाथ संघर्ष यात्रा, १९७५ में आपातकाल के खिलाफ आन्दोलन, गौरक्षा आन्दोलन, पाकितान युद्ध के समय तथा श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन आदि कुछ प्रमुख उदाहरण है।
स्वाधीनता के पश्चात १९४८ में राजनीतिक कारणों से संघ पर प्रतिबन्ध लगा तथा श्री गुरूजी सहित कई कार्यकर्ताओं को जेल भेजा गया । बातचीत के सभी मार्ग असफल होने पर संघ के स्वयंसेवकों द्वारा लोकतान्त्रिक पद्धति से किये गये सत्याग्रह के परिणामस्वरूप सरकार को संघ पर लगी पाबंदी को हटाना पड़ा। हजारों वर्षों के सतत संघर्षों के उपरान्त भारत को स्वाधीनता प्राप्त हुई । स्वाधीनता आन्दोलन की प्रेरणा जिस स्व के आधार पर थी, उसी स्व के आधार पर समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र खड़ा हो, यह आवश्यक था । राष्ट्र जीवन की इसी दिशा में संपूर्ण समाज अग्रसर हो इस हेतु से भारत की स्वतंत्रता के बाद शिक्षा, राजनीति, मजदूर, जनजाति समाज, किसान अधिवक्ता, वैज्ञानिक, कलाकार आदि विभिन्न क्षेत्रों में भारत के शाश्वत राष्ट्रीय विचार संघ प्रेरित विविध संगठन प्रारंभ हुए ।
संघ समाज को संगठित करने का कार्य तो कर ही रहा था, परन्तु उसके साथ-साथ संपूर्ण समाज जीवन को व्याप्त करने वाले अनेक संगठन भी आरंभ हुए । यह संघ कार्य का दूसरा पड़ाव था । आज विद्यार्थी परिषद्, विद्या भारती, भाजपा, किसान संघ, मजदूर संघ, अधिवक्ता परिषद्, विश्व हिन्दू परिषद् जैसे 42 से अधिक संगठन समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में सक्रिय एवं प्रभावी हैं ।
संघ नें आगामी वर्षों में समाज परिवर्तन के इस कार्य को पंच परिवर्तन के रूप में समग्रतापूर्वक से देखा है और उसका अनुभव किया है कि समाज परिवर्तन का यह महान कार्य संपूर्ण समाज शक्ति द्वारा होने से ही संभव है ।
समाज जीवन में समयानुकूल परिवर्तन होना चाहिए । हमें पांच बिन्दुओं को ध्यान में रख कर राष्ट्र हित में अपने जीवन में अपेक्षित परिवर्तन लाना उपयोगी रहेगा ।
Ⅰ – सामाजिक समरसता – समाज में ऊँच- नीच , छुआ-छूत, जाति-भेद, जन्म आधारित भेदभाव से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता को स्थापित करने हेतु हर संभव प्रयास करना है ।
Ⅱ – पर्यावरण संरक्षण – पर्यावरण के अनुकुल अपनी जीवन शैली और उसमें व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं राष्ट्रीय दृष्टि समाहित कर दैनंदिन व्यवहार करने की आवश्यकता है । पेड़, पानी एवं प्लास्टिक का उपयोग इन तीनों बातें महती आवश्यक है।
Ⅲ – कुटुम्ब प्रबोधन – परिवार में हिन्दू-विचार एवं जीवन शैली को विकसित करते हुए परिवार कैसे चलाना है, उसके क्या कर्त्तव्य हैं, परिवार का क्या महत्व है इसपर हमें विचार करने की आवश्यकता है ।
IV – “स्व” आधारित जीवन शैली – जीवन के हर क्षेत्र में विदेशी–दासता से मुक्त होकर स्व- भाषा, स्व-भूषा, स्वदेशी आदि पर आग्रह हो ।
V – नागरिक कर्त्तव्य – नित्य जीवन में एक अच्छे नागरिक के नाते राष्ट्रीय एवं समाजहित में जिम्मेदारी पूर्वक कार्य आज की आवश्यकता है।
संघ के स्वयंसेवक नित्य प्रार्थना में राष्ट्र को परम वैभव के शिखर पर ले जाने का संकल्प लेते हैं । यह संकल्प तब तक पूरा नहीं हो सकता जबतक समाज के प्रत्येक घटक मुख्य धारा से जुड़कर सशक्त, स्वावलंबी, स्वाभिमानी और शेष समाज से समरस नहीं हो जाता | इसी हेतु स्वयंसेवक सेवा कार्य चलाते हैं । इस समय देश में स्वयंसेवकों द्वारा १,५५,००० [ एक लाख पचपन हज़ार] सेवा कार्य संचालित है |
किसी भी श्रेष्ठ कार्य को उपहास, उपेक्षा, विरोध और फिर स्वीकार्यता के चरणों से गुजरना पड़ता है वैसे ही संघ को भी इन मार्गों से गुजरना पड़ा । किन्तु श्रेष्ठ अधिष्ठान, उत्तम कार्यपद्धति और स्वयंसेवकों के निःस्वार्थ देशभक्ति से भरे, समरसतायुक्त आचार के कारण संघ समाज का विश्वास जीतने में सफल हुआ है । आज संघ का कार्य कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से अरुणाचल प्रदेश तक भारत के हर कोने तक पहुँच गया है । आज संपूर्ण भारत के कुल ९२४ जिलों में से ९८.3 प्रतिशत जिलों में संघ की शाखाएं चल रही हैं । कुल ६६१८ खण्डों में से ९२.3 प्रतिशत खण्डों में, कुल ५८९३९ मंडलों में से ५२.२ प्रतिशत मंडलों में ५१७४० स्थानों पर ८३१२९ दैनिक शाखाएं तथा अन्य २६४६० स्थानों पर ३२१४७ साप्ताहिक मिलनों के माध्यम से संघ कार्य का देशव्यापी विस्तार हुआ है ।
झारखण्ड में संघ कार्य का विस्तार ४० के दशक में प्रारंभ हुआ [तत्कालीन बिहार] । आज संघ के १०० वर्ष की यात्रा में झारखण्ड के सभी २४ शासकीय जिलों में शत –प्रतिशत कार्य पहुच गया है । २५८ खण्ड एवं ८९ नगरों में शत-प्रतिशत संघ कार्य है । वर्तमान में झारखण्ड में ९८३ स्थानों पर १४११ शाखा, मिलन एवं संघ मंडली हैं।