रांची। ‘असमाहि हमर हाथ’ एक विस्फोटक कविता संग्रह है, जिसके प्रकाशन के तुरंत बाद मैथिली के पारंपरिक रचनाकारों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और इस पुस्तक की भूमिका लिखने वाले प्रगतिशील कवि जीवकांत सहित कवि द्वय गंगानाथ गंगेश और उपेंद्र के खिलाफ अनर्गल प्रलाप शुरू हो गया था लेकिन जीवकांत अपनी बात पर अडिग रहे।
यह बात रांची के हरमू स्थित मिथिला दलान पर शुक्रवार को आयोजित गंगानाथ गंगेश और उपेंद्र के संयुक्त मैथिली काव्य संग्रह ‘असमाहि हमर हाथ’ के दूसरे संस्करण का लोकार्पण करते हुए साहित्य अकादमी में मैथिली परामर्श दात्री समिति के सदस्य प्रमोद कुमार झा ने कही। उन्होंने कहा कि असमाहि हमर हाथ मैथिली की प्रतिरोधी कविता का प्रतिनिधि स्वर है, जिसकी भूमिका लिखकर जीवकांत ने बहुत ही साहसिक कार्य किया। बेशक उन्हें वर्षों तक परंपरावादियों का कोपभाजन बनना पड़ा लेकिन मैथिली काव्य साहित्य के समक्ष दो प्रतिरोधी स्वर प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई।
झा ने कहा कि इस काव्य संग्रह का एक संबंध रांची से भी जुड़ा हुआ है। क्योंकि, 1970 में जब यह संग्रह पहली बार प्रकाशित हुआ था, तो रांची के कवियों पर इसका इतना प्रभाव पड़ा कि 1972 में सोमदेव की भूमिका के साथ चार कवियों का संयुक्त काव्य संग्रह धुरी का प्रकाशन हुआ। यही नहीं सोमदेव के संपादन में मैथिली के अग्निजीवी पीढ़ी के कवियों का संकलन भी इसी संग्रह के प्रभाव में प्रकाशित हुआ था।
डॉ. नरेन्द्र झा ने कहा कि नयी पीढ़ी के रचनाकारों को इस किताब से अवश्य गुजरना चाहिए। डॉ. कृष्णमोहन झा मोहन ने कहा कि नयी पीढ़ी के लिए यह जरूरी किताब है। इसका प्रभाव समकालीन लेखन में अवश्य दिखेगा। कथाकार सुस्मिता पाठक ने इस किताब के पुनर्पाठ और पुनर्प्रकाशन को ऐतिहासिक बताया।