गिरिडीह। झारखंड के गिरिडीह जिले के तीर्थ सम्मेद शिखरजी मधुबन स्थित जैन श्वेतांबर संस्था तलेटी तीर्थ में मुंबई की दो कुंवारी बहनों ने सोमवार को जैन धर्म की दीक्षा लिया।
जिस माया नगरी मुंबई में मॉडलिंग और रैंप कर 16-17 साल की युवतियां फिल्मी दुनिया में करियर बनाने प्रवेश करती है। उसी माया नगरी मुंबई की दो चचेरी बहनों ने सांसरिक जीवन का त्याग कर सोमवार को जैन साध्वी का वेशभूषा धारण कर ली। आठ साल बाद एक साथ दो चचेरी बहनों ने विधि-विधान के बीच केशलाचन का विधान पूरा की और सफेद वस्त्र धारण कर जैन साध्वी बन गई।
सोमवार को जैन मुनि आचार्य भगवंत मुक्ति प्रभ सूरी जी महाराज के सानिध्य में मुंबई की दर्शी बेन और देशना बेन ने खुद की मेहनत से अर्जित कमाई को सम्मेद शिखर मधुबन के कई गांवों के गरीब और जरुरतमंद ग्रामीणों के बीच झूमते-गाते हुए बांटी। आयोजकों के अनुसार दोनों चचेरी बहनों ने इस दौरान कई गांव के ग्रामीणों के बीच लाखों रुपए बांट दी। इस दौरान दोनों चचेरी बहनों के साथ उनके माता-पिता समेत हजारों की संख्या में अलग-अलग राज्यों से आएं जैन समाज के श्रद्धालु मौजूद थेए जो इस भव्य धार्मिक आयोजनों के गवाह बने।
इसके बाद दोनों का मुक्ति प्रभ सूरी जी महाराज के सानिध्य में जैन साध्वी बनने का विधान शुरु हुआ। इधर दोनों बेटियों के जैन मुनि की दीक्षा लेने के बाद उनके पिता अमित शाह और मनीष शाह कहते है कि उनके परिवार के सदस्यों ने कुछ महत्पूर्ण काम किया होगा, जो उनकी बेटियां सांसरिक मोहमाया त्याग कर दीक्षा लेते हुए जैन साध्वी बनी और उनकी बेटियों पूरे देश भर में जैन समाज का प्रचार करेगी।
इधर जैन साध्वी का दीक्षा लेने के बाद आचार्य मुक्ति प्रभ जी महाराज ने दोनों चचेरी बहनों का नया नामांकरण करते हुए दर्शी बेन का नया नाम पूज्य देवारण्य पुण्य और देशना बेन का नाम पूज्य चित्य पुण्य श्री का नाम दिया। दोनों का नया नामांकरण होते ही आयोजन स्थल में श्रद्धालुओं ने दोनों के खूब जयकारे भी लगाएं।
मुंबई निवासी अमित शाह का कोई बेटा तो नहीं, ईश्वर ने एक बेटी के रुप में दर्शी बेन दिया, तो वह मुंबई में रहकर पढ़ाई पूरा की और चाटेर्ड एकांउटेड की पढ़ाई पूरा करते हुए तीन साल पहले 16 साल की उम्र में इसी सम्मेद शिखर पहुंची, तो यहीं की होकर रह गई।
जबकि अमित के भाई मनीष शाह के बेटे नहीं है बेटी के रुप में देशना बेन का जन्म हुआ। मनीष शाह की बेटी देशना भी माया नगरी मुंबई में रहते हुए पढ़ाई पूरा की और 12वीं की पढ़ाई करते हुए मधुबन पहुंची। दोनों बहनों ने सम्मेद शिखर मधुबन में तीन साल जैन समाज के मुनियों के बीच रहकर पिछले साल जैन साध्वी रत्ना सूरी जी महाराज के मंगल चातुमार्स काल में उनके संस्कारों और उद्बोधन से प्रेरित हो कर सांसरिक जीवन त्यागने और जैन साध्वी बनने का संकल्प लिया।