Rae Bareli: आजादी कितने कठिन संघर्षों के बाद मिली है। यह हमारे आसपास बिखरी कहानियों व कविताओं में मिलता है। हालांकि ज्यादातर लोग अब उनको भूल चुके हैं, जिन्होंने इस संघर्ष में अपनी जान गवां दी। फिर भी लोक गाथाओं, लोक गीतों के माध्यम से इनकी स्मृति आज जीवंत बनी हुई है। अंग्रेंजों ने क्रूरता का परिचय देते हुए किसानों को गोलियों से छलनी कर दिया था,यह घटना इतिहास आज भी गर्व के साथ अमर शहीदों के नाम दर्ज है।
18 अगस्त 1942 को नागपंचमी का पर्व था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आवाह्न पर सरेनी के क्रांतिकारी वीर कुछ कर गुजरने को बेताब थे। हैवतपुरकला गांव में स्वामी गुप्तार सिंह की अध्यक्षता में 10 अगस्त को बैठक हुई, जिसमें 30 अगस्त को सरेनी थाना में तिरंगा फहराने का फैसला लिया। अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस को इसकी भनक लग गई। फ्रंट लाइन के नेता गुप्तार सिंह,राम औतार सिंह गोबर्धन आदि भूमिगत हो गये। अब आंदोलन की जिम्मेदारी सरेनी के सूर्यप्रसाद त्रिपाठी के कंधों पर आ गयी। सभी ने पुलिस को चकमा देने के लिये तारीख घटाकर 18 अगस्त कर दी। क्रांतिकारियों के घरों में सूचना पहुंचाने का काम एक फकीर ने किया जो भीख मांगता था। वह आंदोलन की चिट्ठियां उनके घरों में डेहरी के नीचे डाल आता था। तय तिथि पर हजारों कार्यकर्ता सरेनी बाजार में जमा हो गये। जैसे ही श्री त्रिपाठी संबोधन के लिये मंच पर खड़े हुए तभी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर थाने ले जाने लगी।
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क्रांतिकारियों की भीड़ भी थाने तक पहंच गयी। कार्यवाहक थानेदार बहादुर सिंह ने थाने का गेट बंद करवा दिया। क्रांतिकारी थाने का गेट तोड़कर अंदर जाने की कोशिश करने लगे तभी थानेदार के आदेश से सिपाहियों ने छत पर चढकर मोर्चा संभाल लिया। इसी बीच एक उत्साही क्रांतिकारी के हाथ से फेंका पत्थर थानेदार के बेटे के चेहरे पर जा लगा। खून बहने लगा। थानेदार बहादुर सिंह ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। पहले हवाई फायर हई, लेकिन क्रांतिकारी पीछे नहीं हटे तो उन्हें लक्ष्य बनाकर गोलियां दागी जाने लगी। पांच क्रांतिकारी मौके पर ही शहीद हो गये। इसमें गौतमनखेड़ा के औदान सिंह, सरेनी के सुक्खू सिंह,सुरजीपुर के टिर्री सिंह,मानपुर के पंडित रामशंकरद्विवेदी और पूरे सेवक मजरे हमीरगावँ के चौधरी महादेव शामिल हैं। इसके अलावा लगभग दो दर्जन लोग घायल भी हुए जिनमे रमईपुर के श्रीनाथ सिंह,धुरेमऊ के बैजनाथ सिंह,महाबीर प्रसाद श्रीवास्तव, व राम प्यारे चौरसिया आदि शामिल हैं।पुलिस ने थाने में बंद त्रिपाठी को घोर यातनाएं दी। उन्हें मूत्र तक पिलाया गया किन्तु उन्होंने क्रांतिकारियों के नाम नहीं बताये।
इन्ही अमर शहीदों की शहादत व स्वाधीनता संग्राम सेनानियों की बहादुरी की याद में थाने के ठीक सामने शहीद स्मारक बना हुआ है। यहां हर वर्ष 18 अगस्त को उनकी कुर्बानी की याद में भव्य कार्यक्रम होता है जिसका आयोजन अब शहीद स्मारक ट्रस्ट के जिम्मे है। जबकि हर वर्ष 11 जनवरी को शासन की ओर से शहीद दिवस का आयोजन किया जाता है व अमर शहीदों की शहादत को श्रद्धा पूर्वक नमन किया जाता है । गांवों में आज भी इस लोकगीत की पंक्तियां अंग्रेजी दास्ता के जुल्म की कहानियां बयां करती है।