बुरहानपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि धर्म के मार्ग पर चलकर ही भारत विश्व गुरु बनेगा। यदि हम सब धर्म का पालन करते रहे तो आने वाले बीस-तीस साल में भारत दुनिया को नया रास्ता दिखाने वाला विश्व गुरु बन जाएगा। उन्होंने कहा कि धर्म का मतलब सारी सृष्टि के कल्याण की भावना है। सत्य के मार्ग पर चलकर हमें अपना कर्तव्य निभाना होगा। भारत को महाशक्ति नहीं बनना है बल्कि दुनिया को धर्म सिखाना है।
सरसंघचालक डॉ. भागवत रविवार को बुरहानपुर प्रवास के दौरान यहां आयोजित धर्म संस्कृति सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत में अलग-अलग भाषा, संप्रदाय और धर्म के लोग रहते हैं। अलग-अलग होने के बावजूद हम जानते हैं कि पूरी सृष्टि एक है। इसलिए हम हिंदू हैं। हमें परस्पर एक-दूसरे का सम्मान करते हुए सबको साथ लेकर चलना है। शाश्वत धर्म का पालन करने से सारी सृष्टि सुखी रहेगी।
डॉ. भागवत ने कहा कि संत और मुनियों की बातों का अनुसरण करें। सनातन काल से वे हमें अच्छाई का मार्ग दिखाते आए हैं। सृष्टि के कल्याण का बोझ हम सबको मिलकर उठाना होगा। उन्होंने सत्य को भी प्रिय भाषा में बोलने और छह बुराइयों काम, क्रोध, मोह, लोभ, दंभ व सत्सर से दूर रहने की बात कही है।
धर्म संस्कृति सभा का आयोजन महाराष्ट्र के अमरावती में स्थित नाथ पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी जितेंद्र नाथ ने किया था। धर्म संस्कृति सभा में स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर हरिहरानदं महाराज, काशी के स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, शिवाजी महाराज के वंशज राजे मुधोजी भोंसले भी मौजूद रहे।
सभा से पहले सरसंघचालक ताप्ती तट स्थित नाथ मंदिर पहुंचे। यहां स्वामी गोविंदनाथ महाराज की समाधि पर पुष्प अर्पित किए और श्रीराम दरबार के दर्शन किए। यहां उन्होंने गोविंदनाथ महाराज के समाधि स्थल के जीर्णोद्धार कार्यक्रम में भाग लिया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि हमारे यहां विविधता है लेकिन हम सबका एक नाम दुनिया जानती है, हम हिन्दू हैं।
डॉ. भागवत ने कहा कि बहुत से राष्ट्र दुनिया में आए और चले गए। भारत तब भी था आज भी है और कल भी रहेगा क्योंकि यहां धर्म का काम सबल बनाते रहना है, यह वही करने का समय है। हमें देश में भारतीय मतों को मानने वाले लोगों में जो विचलन आ गया है, उन्हें धर्म की जड़ों में स्थापित करना है। यही सत्य कार्य है। धर्म में जाग्रत करना ईश्वरीय कार्य है। हम सब मिलकर प्रयास करेंगे।
उन्होंने कहा कि हम बाहर की परिस्थिति का विचार करते हैं तो बौखला जाते हैं। बौखलाने की जरूरत नहीं है। हम सब जितने सक्रिय होंगे, सब उतना जल्दी ठीक होगा। हमारे पास सत्य, करूणा, सुचिता, तपस है। हमें अपनों को जागृत करना है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि लोभ, लालच, जबरदस्ती से मतांतरण ठीक नहीं है। जैसे-जैसे देश खड़ा हो रहा है, वैसे-वैसे जो नुकसान हुआ है, वह पूरा होने के आसार दिख रहे हैं। धर्म देने वाला भारत है। लोगों को धर्म, संस्कृति, नीति से जोड़ना है। सौ साल की अवधि में सबकुछ बदल देने वाले लोग यहां आए, लेकिन जो सैकड़ों साल से काम कर रहे हैं उनके हाथों में कुछ नहीं लग रहा है।
सरसंघचालक ने कहा कि समाज को ज्ञान रहे तो वह छल कपट को पहचान सकेगा। इसलिए उसमें आस्था पक्की करना चाहिए। हमारे व्यक्ति को रामायण तो पता है लेकिन उसका भाव नहीं पता। उसे तैयार करना पड़ेगा ताकि सवाल पूछने वाले को सही जवाब दे सके। उसका यह कच्चापन हमें दुख देता है। हमारे पूर्वजों ने हमारी जड़ें पक्की की, उसे उखाड़ने का आज तक प्रयास होता रहा। हमारे लोग नहीं बदलते। जब उनका विश्वास उठ जाता है कि हमारा समाज हमारे साथ नहीं तब ऐसा होता है। उन्होंने कहा कि मप्र में 150 साल पहले पूरा का पूरा गांव ईसाई बना था। बाद में पूरा गांव वापस आ गया। हजारों मील दूर से मिशनरी आकर उनका खाता-पीता है और उसे ही बदलता है। बहुत शीघ्र धर्म के मूल्यों के आधार पर दुनिया चलने वाली है और सबसे पहले भारत चलेगा। 20-30 साल में यह परिवर्तन हम सभी के प्रयासों से देखने को मिलेंगे।