रामगढ़। रामगढ़ कोयलांचल का एक अभिन्न अंग है। यहां के खदान से निकलने वाले कोयले देश को एक नई ऊर्जा देते हैं। लेकिन झारखंड सरकार के उदासीन रवैया के कारण कई खदान सूने पड़े हुए हैं। ना तो वहां खनन हो रहा है और ना ही वहां के कर्मचारियों की सुध ली जा रही है। ऐसा ही खदान सीसीएल के अरगड्डा प्रक्षेत्र का सिरका खुली खदान कोलियरी परियोजना है। सिरका कोलियरी पिछले चार वर्षों से सीटीओ का इंतजार कर रही है। इस दस्तावेज के अभाव में वहां कोयले का खनन असंभव है। कोयला खदान के लोकल सेल सेआर्थिक लाभ नहीं मिलने से बाजारों की रौनक भी बेरंग पड़ने लगी हैं।
सिरका अरगड्डा में 2015 साल के बाद दो भूमिगत खदान बंद होने का सिलसिला आरंभ हुआ था। कामगारों को अरगड्डा क्षेत्र के विभिन्न कोलियरियों में ट्रांसफर कर दिया गया था। जबकि 2019 मार्च के बाद आज तक सिरका खुली खदान से कोयला उत्पादन की राह यहां के कामगार व आम जनमानस ताक रहे हैं।
लगभग चार महीने पूर्व पर्यावरण विभाग (ईसी) के द्वारा कोलियरी सिरका के न्यू वर्कशॉप और सिरका खदान के आस-पास सुरक्षा व पर्यावरण संतुलन के लिए उठाए गए कदमों को लेकर अधिकारियों ने निरीक्षण किया था। लेकिन अभी तक सीटीओ नहीं मिल पाया हैं।
क्या कहते हैं यूनियन प्रतिनिधि
यूनाइटेड कोल वर्कर्स यूनियन के अरगड्डा क्षेत्रीय सह सचिव सुशील कुमार सिन्हा कहते हैं कि सीसीएल सिरका खदान की कोयले की गुणवत्ता काफी अच्छी हैं। बीते चार वर्षों से प्रबंधन के कागजातों के फाइलों में सिटीओ प्रमीशन फंस कर रह गई हैं। जिसके लिए सकारात्मक पहल करनी होगी। तब जाकर सिरका खदान के गर्भ में पड़े करीब 58 हजार टन से भी अधिक कोयला का उत्पादन किया जा सकता। इससे देश को ऊर्जा की गति में नया स्रोत मिल पाएगा।